कविता

दिल तुम समझ लो सच

बरसों पहले उसने
लगायी इक ख़ुशी भरी निगाह,
पर ख़ुशी के पीछे,
छिपी थी ग़म की भी छाया।

दिलकश तो प्रपुल्लित हो उठा,
पर आँसू की बूँदें भी निकल पड़ीं।

ख़ुश-आमदीद!
वह आ गया।
दिल की दहलीज़ से,
अंदर तक कदम उठा,
पर साथ में हज़ार तरलीफ़ें भी ले आया।

हे दिल!
तुम एक मुद्दत के बाद समझोगे,
ख़ुशी नहीं,
यह परेशान का मुझराया हुआ गुल्दस्ता है।

दिल, तुम हर लम्हे में तड़पते रहोगे।
जीवन भर तुम,
चैन से मिलने की
मशक्कत करते रहोगे।

सिनालि पतिरण

मैं श्री लंका से सिनालि पतिरण हूँ। अपनी हिंदी की बी.ए. डिग्री खत्म करके मैं अब हिंदीं में मेरी एम.फ़िल डिग्री का अध्ययन कर रही हूँ। साथ में श्री जयवर्धनपुर विश्वविद्यालय,श्री लंका में अस्थायी सहायक हिंदी प्राध्यापिका के रूप में काम कर रही हूँ। उसके अलावा श्री लंका के सिंहल भाषी छात्र-छात्राओं को हिंदी भाषा पढ़ा रही हूँ।