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जितेंद्र कबीर के मुक्तक-पोस्टर्स- 5

जितेंद्र कबीर के मुक्तक-पोस्टर्स- शृंखला की पांचवीं कड़ी आ पहुंची है. हमारे पाठकगण तो इसे बहुत पसंद कर रहे हैं, इसलिए यह शृंखला आगे बढ़ती जा रही है. इस शृंखला पर हमने इस शृंखला के मुख्य नायक जितेंद्र भाई से उनका विचार जानना चाहा.

ब्लॉग ठीक जा रहा है? कोई कमी तो नहीं है? अगले अंक के लिए अपने बारे में कुछ नया लिख भेजिए.

“लीला जी, मेरा तकनीकी पक्ष हमेशा से थोड़ा कमजोर रहा है। इसलिए ब्लॉग की अच्छाई-बुराई के बारे में तो टिप्पणी नहीं कर पाऊंगा। मैं इसके साहित्यिक महत्व के बारे में भी नहीं जानता। हां, इसके माध्यम से लोगों तक मेरी रचनाएं पहुंच रही हैं और यही एक रचनाकार होने के नाते मेरा ध्येय है।” जितेंद्र भाई ने लिखा.

जितेंद्र भाई, आपकी साफगोई हमें बहुत पसंद आई. हमारी समझ से आपके सशक्त तकनीकी पक्ष ने ही हमें आपसे मिलवाया है और हमारे पाठकों को एक नया अनुभव हो रहा है.

अपने बारे में कुछ बताते हुए जितेंद्र भाई ने लिखा-
“लीला जी, मैं एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखता हूं। पढ़ने-लिखने का शौक बचपन से है लेकिन शुरू में तो केवल पाठ्य पुस्तकें ही उपलब्ध थीं, इसलिए वही ज्यादातर पढ़ीं। बच्चों वाली पत्रिकाएं जैसे चंपक और कॉमिक्स भी कभी-कभार पढ़ने को मिल जाती थी। किसी कक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद जब नई कक्षा की पाठ्य पुस्तकें आती थी तो सबसे पहले हिंदी की पूरी किताब पढ़ डालता था, उसके बाद अंग्रेजी और इतिहास की पुस्तकें। मुझे कहानियां पढ़ना बहुत पसंद है। उनके प्रति मेरा इतना आकर्षण था कि गांव में अपने से अगली कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों की भी किताबें मांग कर पढ़ लेता था।”

जितेंद्र भाई, साधन-सम्पन्न न होते हुए भी यही तो है आगे बढ़ने का सही सलीका भी और समाधान भी! आगे बढ़ने की ललक ही उसे आकाश की ऊंचाइयों को छूने के लिए प्रेरित करती है और एक दिन आपकी तरह वह न केवल आसमान की ऊंचाइयों को छूने में सफल होता है, गगन को भी कलात्मक बना देता है. सच है-
“अंधेरे में भी रोशनी की झलक देखने वालों के लिए,
हर दिन नया हो सकता है.”

आपकी उत्कृष्ट कलात्मकता को हमारा नमन.

कला के प्रति अपने रुझाव के बारे में जितेंद्र भाई का कहना है-
मैं कलात्मक अभिरुचि का इंसान हूं। ज्यादातर दृश्य और श्रव्य कलाओं में रुचि रखता हूं। जिसमें संगीत, अभिनय, साहित्य प्रमुख हैं। मैंने कला अध्यापक बनने का मेरा फैसला अपनी आर्थिक स्थिति के चलते किया था। उस समय उसकी योग्यता कला विषय के साथ दसवीं पास थी। पढ़ाई तो मुझे करनी ही थी लेकिन मैंने सोचा कि पहले कोई व्यावसायिक डिग्री या डिप्लोमा कर लूं तो नौकरी की आस भी हो जाएगी। इसलिए जब मैं विज्ञान विषय के साथ दस जमा दो की पढ़ाई कर रहा था तो उसे बीच में छोड़ कर कला एवं शिल्प अध्यापक के द्विवर्षीय डिप्लोमा के लिए जालंधर पंजाब चला गया। वहीं प्रशिक्षण के दौरान मेरा कला की तरफ ज्यादा रुझान हुआ।

आज बस इतना ही, शेष आपके-हमारे द्वारा कामेंट्स में.

चलते-चलते
आज टेडी डे है. वैलेनटाइन सप्ताह का चौथा दिन होता है- टेडी डे. टेडी डे पर टेडी देना प्रेम के एक प्रतीक के रूप में है. यह मात्र एक अद्भुत संयोग कहिए या सुनियोजित प्रक्रिया, कि इन दिनों बसंत ऋतु ऋतु चल रही है और भारत में बसंत पंचमी के साथ स्नेह-प्रेम के त्योहार शुरु होकर होली तक जाते हैं. सबको टेडी डे की हार्दिक शुभकामनाएं.

 

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244