गीतिका/ग़ज़ल

काट दिए मेरी कलम के पर

तमन्ना थी कभी खुद को , मैं  खूब संवारूंगी
सौलह श्रंगार करके  ,  मैं खुद कि ही नज़र उतारूंगी।।
आया वो  वक्त  जब तमन्नाओं को पूरा हमें करना था
मुझे क्या पता था ,  तमन्नाओं को मैं सीने में ही दबाऊंगी।।
कहते हैं ,  तुम्हारा दायरा सिर्फ घर कि ये चार दीवारी है
सोचती हूं ,  जमाने से क्या अब मैं न कभी मिल  पाऊंगी।।
कब तलक खुद कि तमन्नाओं का दम़ मैं घोंटू
कब तलक , शब्दों को सजा मैं खुद को मरहम लगाऊंगी।।
उड़ना चाहती , कलम के पर लगा मैं खुले आसमां में
काट दिये मेरी कलम के पर , क्या मैं अब उड़ ना पाऊंगी
हो रही वीणा की झंकार भी अब कुछ मधम-मधम
वीणा कि झंकार के सुर , लगता है अब मैं खो ही जाऊंगी।।
— वीना आडवाणी तन्वी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित