पशोपेश
“आज मैं पिता बन गया, माँ जगदम्बा का आगमन हुआ !आप सभी से अनुरोध है कि कोई सुंदर नाम सुझाएं.” अनिकेत ने फेसबुक पर लिखा.
“किस अक्षर से नाम बताना है?” तुरंत किसी ने जोश से पूछा. फेसबुक जोशबुक बन गया था!
“किसी भी अक्षर से सुझाव दीजिये.” जवाब मिला.
“बिलकुल कोशिश करती हूं.”
“अनिकेत की अंकिता.” उसने लिखा.”
कात्यायनी, जानवी. वैष्णवी. “किसी और ने लिखा.
“अग्नि, मैत्रेयी, छाया, प्रत्यूषा, आस्था, ऐश्वर्या, सृष्टि.” एक भाई ने लिखा.
“शाम्भवी माँ का एक नाम अन्वी,” एक सुझाव आया.
“सावन में बिटिया आई है तो उसका नाम शिव्या रखें.”
“सावन का पावन मास है, ‘ पावनी ‘ नाम अति उत्तम रहेगा.”
“सावन का पवित्र माह चल रहा है तो बिटिया का नाम सावनी रख सकते हैं.” सुझाव में कुछ नवीनता थी.
“अनिकेत के घर अक्षरा (दुर्गा का ही एक नाम है) ने जन्म लिया है.”
“इस बच्ची का नाम मां जगदम्बा का रूप (अनोमा) कैसा रहेगा?” प्रश्न था या सुझाव!
“जगदंबा के एक सौ आठ नामों में तो एक से बढ़कर एक नाम हैं जैसे आद्या, अमेया, नित्या, भव्या. भाव्या, शांभवी. आर्या……. और अनेक। पसंद कर कोई भी रख सकते हैं. पुत्री लक्ष्मी की विशेष बधाई स्वीकार करें.” एक पंथ दो काज! नाम भी सुझा दिया, लगे हाथों बधाई भी दे दी.
“एक ही नाम आया ध्यान में आपकी पोस्ट पढ़ कर शताक्षी.” एक और परामर्श.
“शानवी.” किसी की राय थी.
“कैरवि इसका अर्थ है चाँदनी.” सुझाव बुरा नहीं था.
“शाम्भवी, श्रेष्ठा. शाम्भवी मां दुर्गा का एक नाम है.” कमान में अभी तीर थे.
“आरना इसका अर्थ है जगदम्बा, देवी.” यही सुझाव शेष था.
“किसकी राय मानूं!” अनिकेत पशोपेश में थे. ”फेसबुक पर सब अपने ही तो हैं!”
जब सार्वजनिक रूप से अपनी डोर फेसबुक जैसी लोकप्रिय सोशल मीडिया साइट पर सबको थमा दी जाए, तो पशोपेश होने की मुश्किलात का सामना होना स्वाभाविक है.