कविता

क्या लेकर आया है जो ले जायेगा

यह कैसी विडम्बना है
कि हम सब जानते हैं
मगर मानते नहीं हैं
कि हम क्या लेकर आये हैं
क्या लेकर जायेंगे?
खाली हाथ आये थे
तन पर कपड़े तो क्या
एक रेशा तक नहीं था।
फिर भी हम कितने भ्रम में रहते हैं
बस! हाय धन, हाय धन
इसी धुन में धनु पशु बनने से
खुद को रोक नहीं पाते हैं,
नीति, अनीति का विचार तक नहीं करते
क्या अपना है जो हम ले जायेंगे
यह विचार तक नहीं कर पाते
जब कुछ लाये ही नहीं थे
तो लेकर कैसे जा पायेंगे?
यह विचार करने की जरूरत है
न कुछ लेकर आये थे
और न ही कुछ लेकर जायेंगे
खाली हाथ  ही आया था, खाली ही जायेगा।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921