सामाजिक

ज्ञान को साझा करना

दुनियां रूपी इस खूबसूरत सृष्टि में विद्या एक ऐसा धन है जो खर्च करने से याने साझा करने से बढ़ता ही चला जाता है जो सभी धनों से सर्वश्रेष्ठ धन है। इसीलिए ही बड़े बुजुर्गों ने कहा है ज्ञान को साझा करें, जैसे एक दीप  हजारों दीपों को जलाकर जगमगाहट पैदा कर देता है उसी तरह ज्ञान को साझा करना भी हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है। विद्या श्रद्धेय मां सरस्वती का ऐसा अस्त्र है जो मनुष्य का असली सौंदर्य होता है जिसके बल पर हम यश,सुख समृद्धि रूपी धन प्राप्त करते हैं जो सभी धनों से श्रेष्ठ धन हैं ऐसा वेदों कतेबों में भी आया है।
साथियों बात अगर हम विद्या की करें तो यह ज्योत किसी अमीर -गरीब, दिव्यांगों या देशों की सीमाओं तक सीमित नहीं रहती न ही इसे कोई रोक सकता है। हमने दो दिन पहले ही मीडिया द्वारा सुने कि  यूपी में एक सब्जी बेचने वाली लड़की जिसके माता -पिता भी सब्जी बेचते हैं वह एक सिविल जज बन गई। महाराष्ट्र में एक ऑटो चालक की बेटी भी सीए में टॉपर आई थी। किसी गरीब के तीनों बच्चे आईएएस बन गए तो हमारे छोटे से शहर गोंदिया में भी स्टाम्प वेंडर के यहां काम करने वाले की लड़की सिविल सर्वेंट बनी।
बात अगर हम ज्ञान की करें तो, आज के समय की सबसे बड़ी शक्ति ज्ञान ही है। ज्ञान जितना देखने में छोटा, उतनी ही व्यापकता लिए हुए है। ज्ञान का क्षेत्र बहुत विशाल है। यह जीवन -पर्यंत चलता है। आज वही देश सबसे कामयाब है जिसके पास ज्ञान की अद्भुत शक्ति है। यह ज्ञान ही है जो मनुष्य को अन्य जीव-जन्तुओं से श्रेष्ठ बनाता है। ज्ञान दिया जा सकता है या रोका जा सकता है, साझा किया जा सकता है या गुप्त रखा जा सकता है, और इनमें से किसी भी मामले में शक्ति के स्रोत के बराबर है। सामाजिक प्राणी के रूप में शक्ति का प्रयोग मनुष्य को स्थानिक लगता है। ज्ञान शक्ति का स्रोत बन जाता है जब इसे दूसरों के साथ साझा किया जाता है।
बात अगर हम ज्ञान के महत्व की करें तो, ज्ञान एक चुम्बक की भांति होता है, जो आस-पास की सूचनाओं को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। यदि हमें किसी भी चीज के बारे में बेहतर ज्ञान होता है तब उस सूचना या तथ्य कोआत्मसात करना ज्यादा आसान होता है। ज्ञान सभी के जीवन में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ज्ञान ही हमें जीवन जीने का सलीका सिखाता है। ज्ञान अर्जन की यात्रा इस संसार में आने के तुरंत बाद शुरु हो जाती है। नवजात सर्वप्रथम अपनी इंद्रियों से ज्ञान प्राप्त करता है। स्पर्श के माध्यम से उसे पता चल जाता है कि कौन अपना है, कौन पराया।
बात अगर हम सौंदर्य बोध की करें तो, सौंदर्य मतलब सुंदरता और बोध मतलब ज्ञान। यानी सुंदरता की समझ या ज्ञान ही सौंदर्य बोध है। हर किसी में सौंदर्यबोध की भावना होनी चाहिए। सौंदर्यबोध से ही हम किसी की बाह्यं या आंतरिक सुंदरता को मापते हैं। बाहरी सुंदरता उम्र के साथ ढल जाती है मगर आंतरिक सुंदरता स्थायी रहती है।
अगर व्यक्ति दुनिया में नहीं रहता तब भी वह अपने आचार-विचार व व्यवहार आदि गुणों यानी आंतरिक सुंदरता के बल पर लोगों के दिल में जिंदा रहता है। इससे साफ पता चलता है कि व्यक्ति के जीवन में आंतरिक सुंदरता का कितना महत्वपूर्ण योगदान है। किसी के आकर्षक चेहरे को देखकर ही सौंदर्यबोध करना चूक है। असली सुंदरता गुणवान होने में है। सौंदर्यबोध सदियों से हमारे विचार विमर्श का केंद्र रहा है।
बात अगर हम वर्तमान आधुनिक परिप्रेक्ष्य की करें तो आज ज्ञान को साझा करने की थ्योरी एक व्यवसाय के रूप में परिणित होते जा रही है? क्योंकि वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में हर किसी के पास अपनी अपनी थ्योरी और जानकारी होती है जिसके बल पर वह उस प्रोफेशन का मास्टर कहलाता है, और उसी के बल पर उसका रुतबा चलता है, तो वह उसकी चाबी है तो फिर वह अपनी चाबी किसी और को क्यों देगा ? बस, यही सोच!! ज्ञान साझा करने का रोड़ा अपनी विशालता की ओर बढ़ता जा रहा है जिसे रेखांकित करने की ज़रूरत है। ।बात अगर हम माननीय राष्ट्रपति द्वारा दिनांक 8 मई 2022 को एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने कहा, कि हमेशा हमारी परंपराओं ने विशेष तौर पर ज्ञान के क्षेत्र में साझा करने पर जोर दिया है। इसलिए, हमने जो ज्ञान अर्जित किया है, उसे साझा करना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां नवाचार और उद्यमिता को सराहा और प्रोत्साहित किया जाता है। नवाचार और उद्यमिता दोनों में न केवल प्रौद्योगिकी के माध्यम से हमारे जीवन को आसान बनाने की क्षमता है, बल्कि कई लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि आईआईएम, का इको-सिस्टम छात्रों में नौकरी तलाशने वाले के बजाय नौकरी देने वाले बनने की मानसिकता को बढ़ावा देगा। वेदों में ठीक ही आया है कि विद्याधनम्
न चौरहार्यं न च राजहार्य
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि ।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् ।।1।।
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरु:।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्या-विहीनः पशुः।।2।।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि ज्ञान को साझा करना ज़रूरी हैं। ज्ञान का दीप जला कर करे अज्ञान का दूर अंधेरा, विद्या रूपी ज्ञान अस्त्र है ऐसा। विद्या मनुष्य का असली सौंदर्यबोध होता है जो यश, सुख, समृद्धि प्रदान करने का सभी धनों से सर्वश्रेष्ठ धन है ऐसा वेदों में भी आया है।
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया