खुदपरस्ती और ग़रूर अपना – मैं पीछे छोड आया हूं
बरबादियों को ही अपनी – मैं अपने साथ लाया हूं
जमा तो बुहत कुछ किया था – मैं ने अपनी ज़िन्दगी में
आज नसीब अपने ही को मैं – अपने साथ लाया हूं
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फूल मैं ने तो बोए थे – अपनी इस ज़िन्दगी के चमन में
कांटे उग आए कहाँ से – बात यह मैं जानता नही हूं
क़ैदी बन के रह गया था – मैं तो अपनी ही लाचार मुहब्बत का
अरमानों में लिपटी हुइी लाश अपनी – मैं अपने साथ लाया हू
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कारवाँ से टूट कर मुसाफिर – किसी मंज़िल का नही रहता
फूल टूट कर अपनी शाख़ से – किसी चमन का नही रहता
बसाने के लिये इक नया शहर – अपनी टूटी हुइी उम्मीदों का
हसरतों को अपनी मैं – गीली पलकों पर सजाकर लाया हूं
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सारे काम दुनिया के – तलवार की नोंक पर नही होते मदन
लिखने के लिये दास्तान बेबसी की – क़लम साथ लाया हूं
दूर होकर भी आप – बुहत ही पास हैं मेरे बेमुराद दिल के
अपने ज़ख्मों की शफा के लिए – मरहम उम्मीद की साथ लाया हूं