राजनीति

हिंदू आस्था का अपमान आखिर कब तक !

अयोध्या विवाद के समाधान के बाद अब काशी मेें ज्ञानवापी विवाद और मथुरा में शाही ईदगाह विवाद भी निर्णायक दौर मेें पहुंच रहा है। जब से काशी में ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे की शुरूआत हुई है, उसके बाद वहां पर प्राचीन मंदिर के सबूत मिलने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ और सर्वे के अंतिम दिन जिस प्रकार से शिवलिंग मिला है, उसके बाद से देशभर के सेकुलर राजनैतिक दलों ने एक बार फिर अपनी विकृत सेकुलर राजनीति शुरू कर दी है और सभी राजनैतिक दलों के नेता टीवी चैनलों पर आकर तथा सोशल मीडिया में भगवान शिव, शिवलिंग तथा हिंदू समाज, भाजपा व संघ के खिलाफ लगातार अपमानजनक बयानबाजी कर रहे हैं और ये दल देश में इन मुददों की आड़ में देश का शंात वातावरण जहरीला बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह एक कटु सत्य है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने वाले स्थान पर शिवलिंग मिला है और देश के कई पुरातत्वविद, इतिहासविद तथा मद्रास सहित कई आईआईटी प्रोेफेसर का भी कहना है कि यह शिवलिंग ही है, क्योंकि आज से चार सौ साल पहले फव्वारे को चलाने के लिए बिजली नहीं होती थीें। फिलहाल अभी मामला न्यायालय में है और वहीं साबित होगा कि यह क्या है।
लेकिन जिस दिन ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया, उसी समय से हिंदू विरोधी ताकतों में हाहाकार मच गया है, जो अभी तक नहीं रूका है, जिसके कारण ये सभी दल एक बार फिर बेनकाब हो गये हैं। यह बात अक्षरशः सत्य साबित हो गयी है कि ये सभी दल घोर हिंदू विरोधी मानसिकता के हैं। अभी अयोध्या प्रकरण पर निर्णायक फैसला आने के बाद यही दल अपने आपको सबसे बड़ा हिंदू साबित करने में लगे थे और मंदिर-मंदिर जा रहे थे, कोई नेता अपने आपको शिवभक्त बता रहा था तो कोई रामभक्त बताने लगा था, लेकिन अब सभी दल बेनकाब हो चुके हैं। ज्ञानवापी विवाद पर जब मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि वहां पर शिवलिंग नहीं फव्वारा मिला है, तो सबसे पहले कांग्रेस के नेताओं ने भी यही बयान देकर मुसलमानों को संदेश दे दिया था फिर उसके बाद होड़ सी लग गयी। सपा, बसपा, टीमसी सहित वामपंथी विचारधारा के लोग सोशल मीडिया पर लगातार भगवान शिव तथा शिवलिंग पर बहुत ही अभद्र टिप्पणियां कर रहे हैं। तीन महिला मुस्लिम पत्रकारों तथा टीएमसी सांसद ने भी बहुत ही अभद्र टिप्पणियां की हैं। यह टिप्पणियां इतनी अश्लील और अभद्र है कि इनका उल्लेख नहीं किया जा सकता। यह हिंदू समाज का धैर्य ही है कि वह सबकुछ शांत रहकर माननीय न्यायपालिका पर भरोसा रखते हुए अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा कर रहा है।
अभी जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल ही रही थी, उसी दिन (शुक्रवार) को जिस प्रकार से मुस्लिम समाज ने ज्ञानवापी मस्जिद मेें निर्र्धािरत संख्या से अधिक जाकर नमाज अदा करने की कोशिश की वह यह बताता है कि एक पक्ष में धैर्य की कितनी कमी है और वह भीड़ की ताकत के बल पर हिंदू समाज को भी धमकाना चाहता है और देश की न्यायपालिका को भी परोक्ष रूप से धमकाना ही चाहता था। लेकिन आज देश की न्यायपालिका बहुत ही मजबूत कंधों पर स्थित है और वह किसी भी पक्ष के दबाव में आये बिना अपना काम कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी मुस्लिम पक्षकार विवाद के चलते साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ने की धमकी दे रहे थे, लेकिन माननीय न्यायालय किसी भी पक्ष के दबाव में नहीं आया और अदालत ने एक संतुलन स्थापित करते हुए सराहनीय आदेश ही दिया है। जब मामला अदालत में चल रहा है, उस समय विरोधी दल जहरीले बोल रहे हैं और भड़काऊ बयानबाजी भी कर रहे हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर ने भगवान शिव, शिवलिंग व हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करके वातावरण को खराब करने का प्रयास किया। जब प्रशासन ने उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू की, तब पर्दे के पीछे से जो राजनैतिक दल उनको अपना संरक्षण प्रदान कर रहे थे, वे सभी दल बाहर आ गये। विश्वविद्यालय के रिटायर्ड तथाकथित शिक्षकों सहित सपा, बसपा, वामपंथी, छात्र संगठनों के समूह सहित प्रदेश की राजनीति में अपनी जमीन खो चुके भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण भी मैदान में कूद पड़े। भगवान शिव का अपमान करने वाले प्रोफेसर के समर्थन में चंद्रशेखर रावण ने कहा कि वह सरकार से जवाब मागेंगे कि उप्र में यूपी में कानून का राज है या फिर मनुस्मृति का? इसी प्रकार दिल्ली विश्वविद्यालय में भी बयानबाजी हुई है। ये लोग अपनी सेलेक्टिव राजनीति का ओछा प्रदर्शन कर रहे हैं। यह सभी दल चाहते हैं कि हिंदू समाज के लोग केवल अपना अपमान सहते रहें और उसके खिलाफ आवाज न उठायें। इन सेकुलर दलोें की नजर में हिंदू समाज के पास अभिव्यक्ति की आजादी व उसकी रक्षा करने का भी अधिकार नहीं है, जबकि तथाकथित अल्पसंख्यक समाज के लिए नकली आंसू बहाना ही सबसे बड़ा सत्य है।
ज्ञानवापी विवाद पर जहां भारतीय जनता पार्टी सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विहिप आदि ने बहुत ही सधे हुए बयान दिये हैं, वहीं अन्य दल बहुत ही नफरत भरे बयान दे रहे हैं। उप्र में ंसमाजवादी नेता अखिलेश यादव जो विधानसभा चुनावों में ब्राहमण समाज के वोटों के लिए लालायित हो रहे थे और अयोध्या के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहे थे, वही आज बयान दे रहे हैं कि बीजेपी वाले कुछ भी करा सकते हैं। एक समय में इन लोगों ने रात के अंधेरे में मूर्तियां रखवा दी थीं और यह भी कहा कि हमारे हिंदू धर्म में कहीं भी पत्थर रख दो, एक लाल झंडा रख दो, पीपल के पेड़ के नीचे तो वह मंदिर हो जाता है। आज सपा नेता अपने बयानों से पूरी तरह बेनकाब हो चुके हैं तथा अयोध्या, काशी, मथुरा जैसे विवादों पर उनकी विकृत सोच का खुलासा भी हो चुका है। सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव की तीखी आलोचना हो रही है और उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने के कारण मुकदमा भी लिखा गया है। सपा के संभल से मुस्लिम संासद शफीकुर रहमान बर्क ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में कोई शिवलिंग नहीं है, इससे देश का माहौल खराब हो रहा है। उन्होंने आगे कहाकि कुतुब मीनार और ज्ञानवापी मस्जिद अभी की नहीं है। इस मुददे को खत्म किया जाये। उन्होंने कहा कि कोई मस्जिद की सीलिंग नहीं कर सकता, उस पर हमारी जानें कुर्बान हो जायेेंगी।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो अपने राज्य में मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते खराब हो रही कानून व्यवस्था को संभाल नहीं पा रहे हैं और वह कह रहे हैं कि देश में एक नया तमाशा चल रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि असली तमाशा तो राजस्थान में चल रहा है जिसे पूरा देश देख व समझ रहा है। आज राजस्थान बहुत ही भयावह दौर से गुजर रहा है। अशोक गहलौत को बहुत ही समझदार माना जाता रहा है लेकिन वर्तमान में उन्होंने जो बयान दिये हैं उससे कांग्रेस पार्टी रसातल में ही जायेगी। बसपा नेत्री मायावती भी कह रही हैं कि आजादी के इतने सालों के बाद काशी, मथुरा, ताजमहल की आड़ में धार्मिक भावनाओं को भड़काया जा रहा है। यह वही मायावती हैं जिन्होंने विगत विधानसभा चुनावों में अपनी जनसभाओ में ब्राहमण समाज का मत पाने के लिए अपनी जनसभाओं में जय श्रीराम के नारे लगवा दिये और वह मुस्लिम समाज का मत पाने के लिए मुस्लिम लीग जैसी हो गयी थीं। जिसका नतीजा आज सबके सामने है।
ज्ञानवापी विवाद अब निर्णायक चरण में पहंुच रहा है लेकिन अभी भी कम से कम एक व दो साल का समय तो लग ही जायेगा। यह भी तय हो गया है कि यह मामला अयोध्या की तरह लम्बा नहीं चलने जा रहा है जिसके कारण भी इन मुस्लिम परस्त ताकतों की दिल की धड़कने बहुत तेज हो गयी हैं। ज्ञानवापी विवाद में सर्वे के बाद जब से शिवलिंग मिला है उसके बाद एआईएमआईएम नेता ओवैसी भी बहुत ही सक्रिय हो गये हैं तथा दिनभर कोई न कोई भड़काऊ बयानबाजी कर रहे हैं। ओवैसी अपने आपको मुस्लिम समाज के बीच सबसे बड़े मुस्लिम नेता के रूप में पेश कर रहे हैं लेकिन अभी भी वह अपने प्रयासों में सफल नहीे हो पा रहे हैं। वह अपनी गोट फंसने पर संविधान पर चलने की बात कहने लग जाते हैं, लेकिन वह पालन नहीं करना चाहते। वहीं जम्मू-कश्मीर में गुपकार गठबंधन के नेता भी ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के बाद बौखलाहट में आकर बयानबाजी कर रहे हैं और देश का माहौल खराब होने की बात कह रहे हैं।
अभी भी हिंदू समाज बहत ही धैर्य व शांति के साथ भगवान शिव, शिवलिंग का अपमान सह रहा है। अगर यदि इसी प्रकार पैगम्बर मोहम्मद के खिलाफ कोई टिप्पणी की जाती तो देश में आफत का पहाड़ टूट पड़ता। यह बात कई घटनाओं से साबित हो चुकी है कि हर तरह से हिंदू समाज ही सबसे बड़ा सहिष्णु है। टीवी चैनलों की बहसों में मुस्लिम पक्षकारों से यह भी पूछा गया कि क्या इतिहास में ऐसा कोई प्रमाण या घटना का उल्ल्ेाख मिलता है कि किसी हिंदू राजा ने अपनी सैन्य ताकत के बल पर किसी मस्जिद का विध्वंस किया है तब सेकुलर इतिहासकारों के मुंह पर ताला पड ़जाता है। ज्ञानवापी विवाद का अंतिम निर्णय चाहे जो हो लेकिन आज नकली सेकुलर दल पूरी तरह से बेनकाब हो रहे हैं और अपनी विश्वसनीयता, जमीन तथा भरोसा खोते जा रहे हैं।
— मृत्युंजय दीक्षित