लघुकथा

कठोर स्त्री

सविता और विक्की एक ही कॉलेज में पढ़ते थे दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल गयी| पता ही नहीं चला सविता और विक्की ने अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद अपने अपने  घर वालों को बताई दोनों के परिवार की सहमति से दोनों की शादी संपन्न हुई शादी के बाद सविता ने जिम्मेदारी संभाल रखी थी|
वह सबकी चहेती बन गयी उसके बिना घर का कोई काम नहीं होता था समय व्यतीत होता गया| सविता और विक्की माता पिता बन गए उनका बेटा युवानअब
5 साल का हो गया सबने उसके जन्मदिन को बहुत ही धूमधाम से मनाने का प्लान बनाया| सब रिश्तेदारों को बुलाया सब तैयारी हो चुकी थी शाम को जब सविता तैयार हो रही थी |तभी उसके पेट मे अचानक दर्द उठा वह वही बैठ गयी| उसने अपने फैमिली डॉक्टर से बात करके दवाई ली| जिससे उसको आराम मिल गया डॉक्टर ने उसे दूसरे दिन क्लीनिक पर दिखाने का बोला जन्मदिन की पार्टी भी अच्छे से हो गयी दूसरे दिन सविता को डॉक्टर ने सारे चेकअप किये रिपोर्ट आने के बाद उसने सविता को बताया” कि तुम्हें कैंसर है अब तुम्हारें पास ज्यादा समय नहीं है| यह सुनकर वो सदमे में आ गई और रोने लगी
यह बात उसने किसी को नहीं बताई उसने सबसे दूर होने का फैसला लिया | वो जानती थी सब मुझसे बहुत प्यार करते है वो यह बर्दास्त नहीं कर पाएंगे|
उससे कोई बात करता वो उस पर गुस्सा होने लगती कभी खाना  नहीं बनाती थी | कभी कोई कुछ पूछता उसका जबाब भी नहीं देती थी |वो विक्की से भी प्यार से
नहीँ बोलती थी वह अब कांच जैसी कठोर होती जा रही थी | सबसे ऐसा व्यवहार इसलिए कर रही थी कि सब उससे नफरत करने लगे |मेरे मरने के बाद  ज्यादा याद न करें
सविता का यह रूप देखकर एक दिन विक्की की माँ बोली” बहु को अचानक क्या हो गया ये कांच सी कठोर क्यों होती जा रही है कुछ समझ नहीं आ रहा है’
विक्की एक दिन अलमारी में कुछ  ढूढ रहा था |उसको सविता की कैंसर की रिपोर्ट मिल गयी उसको पढ़कर वो रोने लगा|  विक्की को समझ आ गया कि सविता कांच          सी कठोर कैसे हो गयी हम सबको दुख न हो इसलिए वो सबके साथ कांच सी कठोर स्त्री जैसा व्यवहार कर रही थी|
समय कभी ऐसी परिस्थिति भी ला देता स्त्री अंदर से तो कोमल होती है| लेकिन कभी कभी उसको कांच सी कठोर बनने पर मजबूर होना पड़ता है|
— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश