बाल कविता

प्रकृति

धरती-अंबर पर्वत-सागर,
कितने सुंदर लगते हैं,
हरे-भरे ये पेड़ सजीली,
जड़े नगीने लगते हैं.
स्वच्छ रखेंगे इनको ‘गर हम,
तो खुशियों के फूल खिलेंगे,
हवा-पानी स्वच्छ मिलेंगे,
चुस्त और तंदुरुस्त रहेंगे.
पेड़ों से फल-फूल हैं मिलते,
ऑक्सीजन भी मिलती है,
इन को कभी न काटो इनसे
छाया भी हमें मिलती है.
प्रकृति के रूप निराले,
इनकी रक्षा करनी है,
प्रकृति ही रक्षा करती,
प्रकृति ही जननी है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244