जीवन की कुछ वेदनायें ऐसी भी होती हैं जिनका कहीं कोई निराकरण नहीं होता।
उन तकलीफों से जूझने पर प्राण स्खलित होते हैं हमारे।
क्यों कि जब निहत्था कर के प्रहार महादेव करता है, तब वो आँखें मूंद कर वार पर वार किये जाता है।
उसे इस बात का भी भान नहीं रहता कि उस व्यक्ति के जीवन से जिस प्रत्यंचा को मैं तोड़ रहा हूँ, उसके बाद वह अपनी बागडोर सम्भाल भी सकेगा या धराशाही हो जायेगा।
ये सच है कि काल्पनिक जीवन जी कर हम कुछ समय के लिए अपने हृदय के प्रस्फुटन को स्थगित कर सकते हैं। लेकिन एक समय के बाद सत्य जब मुहाने आकर खड़ा होता है, तब वह कष्ट असहनीय हो जाता है हमारे लिए।
ऐसे जीवन को जीने की तुलना में कहीं अधिक सराहनीय है वो मृत्यु, जो हमें अपनी शय्या पर लिटा कर सदा के लिए शांत कर देती है।
— रेखा घनश्याम गौड़