अपनों का प्यार पाए जमाना गुजर गया।
हँस कर दिन बिताए जमाना गुजर गया।
अब कौन खिलाता प्यार और दुलार से,
अपनों के साथ खाए जमाना गुजर गया।
दोस्ती के दम पर मर मिटते थे जो कभी,
कौन याराना निभाए जमाना गुजर गया।
दिखाबा रिश्तों का खूब निभाते फिर रहे,
मुसीबत में काम आए जमाना गुजर गया।
मर मिटते थे कभी यहाँ एक दूजे के लिए,
प्यार से है हाथ मिलाए जमाना गुजर गया।
भाई भाई में मुहब्बत राम-लक्ष्मण सी यहाँ,
है भाई भाई को बुलाए जमाना गुजर गया।
आदर्श सत्कार संस्कार की वो बातें ही नहीं,
बड़ों को शीश झुकाए जमाना गुजर गया।
शर्म लज्जा आँखों का गहना था शिव कभी,
कौन किस से शर्म खाए जमाना गुजर गया।
— शिव सन्याल