कविता

नारी देवी का रूप

सज गई हुस्न की बाजार यहाँ
बेशर्म मजनूँ घुमता है    जहॉ
जिस नारी ने नर को जन्म दिया
उस नारी का ये चीर हरण किया

नारी तुम लज्जा की एक मूरत हो
नारी माँ की ममता की सूरत   हो
संस्कार तुम्हारी है सर्वोच्च श्रृंगार
पर छली गई हो समाज से हर बार

मजबुरी तेरी किस्मत में है लिखा
मर्द ने गलत आईना में तुमको दिखा
घर परिवार की तुम इज्जत     हो
घर को संवारने की एक फितरत हो

बाबा भैया ने तुम्हें दिया है दुलार
मर्दों ने किया इज्जत  से खिलवाड़
बेच रहा तेरी अस्मत को जहाँ
इज्जत की हो रही नीलाम वहॉं

तुम मर्द की बनी खिलौना हो
समाज का रूप क्रूर घिनौना हो
तेरे जिस्म का मर्द बना है बाज
अप्यासी की बनी हो तुम सरताज

मर्दों का बना है क्रूर अब चेहरा
बाजार सजा कर अर्थ का मोहरा
नुमाईश तेरी जिस्म का है व्यापार
फिर भी चुप चाप है समाज सरकार

गर्भ में जिसने नर को महीनों पाला
इश्क का बना दिया तुम्हें ही निवाला
रे मर्द तेरे कर्मों को है मेरा धिक्कार
ना कर नारी का तुम यह व्यापार

मजबुरी की मारी तुम नारी हो
पर मर्द की इज्जत पे भारी हो
पूजी जाती हो तुम देवी का रूप
दुर्गा काली की हो तुम स्वरूप

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088