कविता

चाँद में अक्स

चांँद में दिख रहा अक्स
क्या सचमुच मेरा है?
या महज छलावा है
अथवा मेरा भ्रम है।
जो भी है क्या फर्क पड़ता है
भले ही ये महज छलावा है
कि मेरा अक्स चांँद में नजर आया है
इसी बहाने से एक पल के लिए ही सही
मुझे खुद पर गुमान हो आया है,
चाँद को मुझसे प्यार हो गया है
इसीलिए उसके आइने में
मेरा अक्स उभर आया है।
यह और बात है कि
यह मेरा भ्रम है,
महज कोरी कल्पना है,
मगर इसी कल्पना की आड़ में ही तो
मेरा अक्स चाँद में नुमाया है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921