ममता का आँचल
झमाझम बारिश हो रही थी। अट्टालिकाओं की ओट में मजदूरों की झोपड़ियां थी। निर्माण कार्य जोर-शोर से चल रहा था। मजदूर रमा और राजू दोनों सुबह सवेरे जल्दी से नहा-धोकर अपने काम पर चले जाते। नहीं तो मुकादम आधे दिन की पगार काट लेता। बूढ़ी दादी के साथ चुन्नू, मुन्नू और रूपली। नन्ही-सी खिलखिलाती दुनिया। दादी के दुलार की छांव में तीनों खूब मजे से रहते। रूपली सबका खाना, टिफ़िन, पढ़ाई का ध्यान रखती। दादी को समय पर दवाई देती। गरीब की बेटी जल्दी बड़ी हो जाती हैं। छरहरी रूपली की कजरारी आंखे, तीखे नयन-नक्श सबका ध्यान आकर्षित करते। निश्चल, मासुम हंसी बड़ी प्यारी लगती। खिलखिलाती तो ऐसे लगता, सुरमई संगीत हो। मीठी वाणी, सहज, सरल, मृदुल व्यवहार। दादी का ध्यान खिलती कली के पास मंडराते भंवरों पर रहता। बेटा, दुपट्टा ध्यान से लो, जोर से न हंसो, ज्यादा बाहर न निकलो, अकेली न जाओ। महकता यौवन। चिंता तो होती है। चुन्नू, मुन्नू भी अब बड़े हो गए है। वो भी खूब मौज-मस्ती करना चाहते है। दादी की रोक-टोक अच्छी नहीं लगती उन्हें। आज जैसे ही दादी सो गई, तीनों बाहर बारिश की रिमझिम बूंदों के साथ खेलने लगे। गरजते बादल, और झमाझम बरसती बुन्दे। कोई राहगीर भी नही। छई-छप्पा-छई। अपनी ही धुन में खेल रहे थे भाई-बहन। पड़ोस के रोहन और अर्णव कब आकर उनके साथ नाचने लगे पता ही न चला।
“कितना रोमांटिक है मौसम।”
“और रूपली के रूप का जादू।”
चुन्नू और मुन्नू गुर्राती नजर से उन्हें घूरने लगे। लेकिन उनका साहस कम न हुआ। रूपली के पास आकर अश्लील फिल्मी गाना गाने लगे। रूपली ने उन्हें हड़काया। लेकिन नशे में चूर उनका उत्साह और बढ़ गया। जबरदस्ती उनके साथ नाचने के लिए मजबूर करने लगे।
“मन्नू भाग, दादी को बुला और लाठी ले आ।”
चुन्नू और रूपली ने उन्हें कसकर पकड़ लिया। दोनों ने शराब पी हुए थी। दादी को आते देख मनचले भागने की कोशिश करने लगे। चुन्नू और रूपली की चिल्लाहट से आसपास वाले भी आ गए। गरीब हमेशा एका बनाकर रहते है। एक दूसरे की मदद के लिए पड़ोसी झट से आ जाते है। दादी की लाठी, गालियों की बौछार, जोरदार पिटाई के साथ उनकी विदाई हुई। रूपली को पड़ोस की अमिता ने स्वयं सुरक्षा का प्रशिक्षण देने का वादा किया। बिना बताए बाहर खेलने के लिए दादी की डांट खाकर, बच्चें दादी को लिपटकर सो गए। ममता का आँचल ओढ़कर। दुबारा, बिना बताए अकेले बाहर न जाने का वादा कर।