बरसात
नेह बरसा पिया का जो बरसात में.
कर लिया आज सिंगार बरसात में.
भीगता तन बदन भीगने मन लगा,
खिल गया रूप रतनार बरसात में.
सन सनन झूमती बह रही है पवन,
गूंजते गीत मल्हार बरसात में.
जब मोहब्बत की माटी से महके जहां,
हो “मृदुल” जीस्त गुलनार बरसात मे.
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”