धर्म-संस्कृति-अध्यात्मस्वास्थ्य

करवा चौथ, दो नोबेल सम्मान और वैज्ञानिकों की पांच पुस्तकें

देवदुर्लभ मानव शरीर की पवित्रता को जीवन का परम ध्येय मानने वाले कबीरदासजी को विनम्र नमन, जिन्होंने “जूं की त्यों धरधीनी चदरिया कह कर हमें दिव्य सन्देश दिया है कि यह शरीर उन्मुक्त उपभोग की वस्तु नहीं है बल्कि अव्यक्त ब्रह्म और व्यक्त (अर्थात् हम सभी व्यक्ति) को मिलाने वाला परम पावन सेतु है. भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवतगीता के दूसरे अध्याय में कहते हैं, ॐ अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ।। हे अर्जुन ! सभी प्राणी मात्र जन्म से पहले अप्रकट (अव्यक्त) थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जानेवाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट (व्यक्त) हैं.

सोचिए ! जब औपचारिक शिक्षा की दृष्टि से विशुद्ध अनपढ़ और निराकार राम के भक्त कबीरदासजी तथा सगुण राम में विश्वास करने वाले तुलसीदासजी के कथनों में विज्ञान भरा पड़ा है तो फिर वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ही निवेश कर दिया हो, उन ऋषि-मुनियों-आयुर्वेदाचार्यों के उद्गारों-श्लोकों-कथनों और उनके द्वारा आरम्भ की गई परम्पराओं- संस्कारों की वैज्ञानिकता पर हम भारतीय क्यों संशय करते हैं, यह एक बड़ा प्रश्न काल हमसे पूछेगा ही.

मानव शरीर मात्र उपभोग के लिए बना है, ऐसी सोच वाले लोग एकाधिक व्यक्तियों से, एकाधिक शारीरिक-द्वारों [की नैसर्गिक कार्यिकी और रचना का उल्लंघन-अतिक्रमण करते हुए], के माध्यम से उन्मुक्त यौनाचार करने को व्यक्तिगत स्वतन्त्रता मानते हैं. ऐसे लोग (विशेषकर औरतें) प्रार्थना के बलबूते अपने पति की मृत्यु को टालने में समर्थ माता सावित्री और अपने पति को कुष्ठरोग से मुक्ति दिलाने वाली महासती मैना सुन्दरी तथा अपने शील की रक्षा के लिए लाखों जौहर करने वाली देवियों का उपहास उड़ाने के अतिरिक्त क्या करेंगे?

करवा चौथ पर अपने पति की दीर्घायु और सुस्वास्थ्य की दृष्टि से मातृशक्तियां दिनभर लंघन करती हैं, इसीतरह वे एकादशी, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, और अन्यान्य उत्सवों पर निर्जला या निराहार अथवा फलाहार कर अपने पति, माता-पिता, बच्चों-परिजनों की सुख, समृद्धि, सुस्वास्थ्य आदि की कामना के साथ ईश्वर के चरणों में भक्तिभावपूर्ण पूजा और तन्मयता के साथ प्रार्थना करती हैं. इसी आशय से वटवृक्ष, पीपल, आंवला, आम, केला आदि पवित्र वृक्षों की भी पूजा-अर्चना-परिक्रमा करती हैं. अपने शीलत्व की रक्षा के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना करती हैं एवं तदर्थ भारतीय नारियां प्राणपण से प्रयास करती हैं. ये व्रत पति- परिजनों को तो दीर्घायु प्रदान करते ही हैं, साथ ही उन्हें भी सुस्वास्थ्य का उपहार देते हैं, यही सनातन संस्कृति की विशेषता एवं वैज्ञानिकता है.

प्रार्थना की अनुपम शक्ति

क्या सावित्री, मैना सुन्दरी और करवा माता की कथा में सच्चाई है तथा हमारी मातृशक्तियां जो करवा चौथ पर प्रार्थना और जो निर्जला व्रत रखती हैं, क्या यह अन्धविश्वास है? आइए जानते हैं, आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसंधानों के प्रकाश में. एक फ्रांसीसी सर्जन हुए हैं, डॉ. एलेक्सिस कैरेल, जिन्हें नोबेल विजेता भी घोषित किया गया था, उन्होंने दो पुस्तकें लिखी हैं, प्रेयर और मैन द अननोन, इन पुस्तकों में वे लिखते हैं कि जब हमने रोग को असाध्य घोषित कर दिया तब प्रार्थना ने चमत्कार कर दिया और वे रोगमुक्त हो गए. डॉ. कैरेल के शब्दों से छेड़छाड़ किए बिना जस का तस प्रस्तुत है:- Prayer is a force as real as terrestrial gravity. As a physician,. have seen men; after all other therapy had failed, lifted out of disease and melancholy by the serene effort of prayer. Only in prayer do we achieve that complete and harmonious assembly of body, mind and spirit which gives the frail human reed its unshakable strength. अर्थात् प्रार्थना, धरती के गुरुत्वाकर्षण के समान वास्तविक शक्ति है। एक चिकित्सक के रूप में, मैंने लोगों को देखा है, अन्य सभी उपचार विफल होने के बाद, प्रार्थना के शांत प्रयास से बीमारी और उदासी से बाहर निकलें हैं. केवल प्रार्थना में ही हम शरीर, मन और आत्मा के उस पूर्ण और सामंजस्यपूर्ण संयोजन को प्राप्त करते हैं, जो अशक्त मानव को अडिग शक्ति देता है.

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ केयर रिसर्च, रॉकविल के प्रमुख डॉ.डेविड बी. लार्सन का कहना है कि प्रार्थना रक्तचाप को कम करती है और बताती है कि विश्वास तंत्रिका तंत्र पर दैनिक तनाव के विरुद्ध अनुकूल प्रभाव डालता है. अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ रिसर्च का दावा है कि प्रार्थना करने वाले बच्चों, वयस्कों और बूढ़ों में अवसाद, निराशा और आत्महत्या की वृत्ति नहीं पनपती है तथा उन्हें हार्ट अटैक एवं उच्च रक्तचाप की बीमारी भी कम होती है l हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के प्रो. ग्रे जेकब एवं पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के यूजीत डी. अकीली ने अपने शोध के निष्कर्ष में बताया कि प्रार्थना से तनावकारी हारमोंस कम हो जाते हैं तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है और शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्त होने लगते हैं l

हीलिंग, मीनिंग एण्ड परपज पुस्तक के लेखक डॉ. रिचर्ड जी. पेट्टी, एम.डी., जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर के फिजिशियन और समन्वित चिकित्सा तथा व्यक्तित्व विकास में नवाचार के लिए ख्यात हैं, ने आधुनिक चिकित्सा को त्याग कर स्वास्थ्य और कल्याण के लिए मानव मस्तिष्क की अनुपम शक्तियों का उपयोग किया है.

प्रार्थना से दूरस्थ चिकित्सा: अनेक अध्ययन हुए हैं, जिनसे यह वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से सिद्ध हुआ है कि हजारों किलोमीटर दूर व्यक्ति के मस्तिष्क पर भी प्रार्थना प्रभावी होती है. इसे माइंड टू माइंड कम्युनिकेशन कहा जाता है.

ईश्वर में विश्वास, है कुछ विशेष बात  

डॉ.एंड्रयू न्यूबर्ग, एम.डी. और मार्क राबर्ट वाल्डमैन ने मिलकर एक पुस्तक लिखी है, “हाउ गॉड चेंजेज योर ब्रेन.  डॉ. न्यूबर्ग मार्कस इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव हेल्थ के डायरेक्टर और जेफरसन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के फिजिशियन हैं. उन्होंने भगवान में विश्वास करने वाले अनेक व्यक्तियों के समय-समय पर किए गए मस्तिष्क के सीटी स्कैन के आधार पर उक्त पुस्तक लिखी है. यानी पुख्ता वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर कि ईश्वर पर आपका विश्वास आपके मस्तिष्क में न केवल क्रियात्मक बल्कि उल्लेखनीय संरचनात्मक बदलाव (एनाटामिकल चेंजेज) लाने में सक्षम है. न्यूरोसाइंटिस्ट फ्रेड एग्बेअरे ने भी अपने क्लीनिकल अनुभवों के पुख्ता आधार पर एक पुस्तक  “बेनिफिट्स इन गॉड लिख डाली है. God is great—for your mental, physical, and spiritual health.

लंघनम परम औषधं

आयुर्वेद में लंघन को परम औषधि बताया है. महर्षि चरक ने कहा है कि लंघन (उपवास) शरीर में हल्कापन उत्पन्न करने वाला होता है. अष्टांग ह्रदय में महर्षि वाग्भट ने इसे सभी अंगों की शुद्धि का कर्ता कहा है. ह्रदय और कंठ की शुद्धता के अतिरिक्त लंघन से शरीर स्फूर्तिवान हो जाता है, कार्यों में उत्साह होता है तथा रोगों का नाश होता है. केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि उपवास कैंसर की वृद्धि को रोकता है और कीमोथैरेपी के दौरान भी लाभप्रद होता है. इसीतरह 14-16 घण्टों तक के करवा चौथ जैसे उपवास पर शोध करने वाले जापानी कोशिका जीवविज्ञानी डॉ. योशिनोरी ओहसुमी को 2016 का मेडिसिन का नोबेल सम्मान मिला है, उन्होंने बताया है कि लंघन (उपवास) के कारण ऑटोफेगी (स्वयं की बीमार कोशिकाओं और रोगाणुओं के भक्षण की क्रिया) सक्रिय हो जाती है, जो रोगग्रस्त कोशिकाओं, बैक्टीरिया और वायरस को खा जाती है, नई स्वस्थ कोशिकाओं का निर्माण करती है और वृद्धत्व को विलम्बित करती है. वैसे तो विश्व के सभी धर्मों और संस्कृतियों में लंघन (फास्टिंग) का विधान है, परन्तु सनातन धर्म और उसी की शाखा के रूप में जन्मे जैन धर्म में आश्चर्यजनक रूप से छोटे-छोटे बच्चें तक कई दिनों तक केवल उबले हुए जल के बलबूते अपनी दैनिक धार्मिकचर्या का उत्साह और ऊर्जा के साथ परिपालन करते हैं.

आव्हान

मातृशक्तियो ! यदि कोई भी व्यक्ति या कथित सेलिब्रिटी आपके धार्मिक अनुष्ठानों, देवी-देवताओं, धार्मिक ग्रंथों, व्रत-उपवासों, परम्पराओं, संस्कारों आदि के विरुद्ध टिप्पणी करें तो ऐसे महानालायकों अथवा उनके दलालों से विवाद न करते हुए, उनका और उनके  द्वारा विज्ञापित सभी वस्तुओं का पूर्ण तथा सामूहिक बहिष्कार करें, क्योंकि ऐसे लोग आपका ही पैसा लेकर, आप ही की संस्कृति, आपके आराध्यों, आप ही की परम्पराओं, आपके ही धर्म का उपहास उड़ाते हैं, फिल्में बनाकर करोड़ों रुपए, प्रशंसा और राष्ट्रीय अथवा अन्तरराष्ट्रीय स्तर के सम्मान बटोरते है. यहाँ तक कि कई ऐसे लोग तो देश विरोधियों की कठपुतली बन चुके हैं. भारतीय सेना के विरुद्ध भी निम्न स्तर के आरोप मढ़ते हैं और उनका उपहास उड़ाने वाली फिल्में बनाते हैं और विडम्बना देखिए, सेंसर बोर्ड में बैठें लोग आँख मींचकर उन्हें दर्शनीय और सम्मानीय भी बना देते हैं. उनके पास जो अपार धन, वैभव और सम्मान है, वह आप ही की देन है, जिसके बलबूते ऐसे लोग स्वयं को सर्वेसर्वा और समाज का सबसे समझदार हीरो मानते हैं.

सभी भारतीय पुरुषों से भी यही आव्हान है, निवेदन है.