कविता

संस्कृति का जन्मदिन

विश्वास था तुम्हारे आने का
ख्वाब था मेरा तुम्हें पाने का,
संजोया था मैंने जो एक सपना
तुम आई, तो सामना हुआ सच का।

तुम मेरी उम्मीद मेरा विश्वास हो
मेरे सपनों का आसमान हो,
नहीं चाहतें हैं मेरी और कुछ तुमसे
मेरी सांसों का तुम आत्मविश्वास हो।

जीवन का पथ तुम्हारा हो सरल
न पड़े पीना कोई कड़वा गरल
नित नये सोपान तुम गढ़ती रहो
हो शांत,सौम्य व्यक्तित्व भी सरल।

दे रहे आशीष हम मातु पितु
हर सुबह तुम्हारी हो नयी नित
जीवनपथ पर तुम सदा आगे बढ़ो
हर क्षेत्र में चमके तुम्हारा नाम नित।

आशा नहीं विश्वास हो तुम हमारा
देखो सामने आकाश खुला सारा
आगे बढ़ो, और बन जाओ तुम
“संस्कृति” नाम का ताज हमारा।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921