कविता

मैं बेवकूफ हूँ

 

कितना अजीब लगता है

जब आप कहते हैं

कुछ आप भी तो सोचिये

थोड़ा सा ही सही विचार तो कीजिए।

आप कहते तो सही हैं

वैसे भी आप गलत कहते भी नहीं हैं

या यूँ कहूँ कि आप तो

कभी गलत कह ही नहीं सकते।

क्योंकि आप और गलत में छत्तीस का आँकड़ा है,

आप दोनों में ये अनुपम सामंजस्य हो

ये अजूबा हो ही नहीं सकता है।

मगर मेरी स्थिति बिल्कुल अलग है

मैं दिमाग से पैदल

शिक्षा से मेरा दूर तक रिश्ता नहीं है

सोचने की बात आप कह रहे हैं,

ये सोच कर मुझे आप से ज्यादा

खुद पर बहुत तरस आता है,

मगर उससे पहले मुझे आप पर

दुनिया भर का क्रोध कुलांचे मारता है।

कारण आप भी जानते हैं

फिर भी मैं बता ही देता हूँ

वैसे भी मैं बेलगाम हूँ

तो फिर खुले मन से बकता हूँ,

आप पढ़े लिखे समझदार हो

ये बात अब शंका पैदा करता है।

क्या कहूँ आपकी सोच को

खुद बड़े समझदार हो

और सोचने को मुझे कह रहे हो,

बड़े बेवकूफ खुद हो

और हमें इशारों में बता रहे हो,

पर एक बात साफ साफ कहे देता हूँ

अपनी जुबान पर लगाम लगा लो,

मैं बेवकूफ हूँ, जो करना हो कर लो

पर मुझे बार बार जलील न करो,

जब मेरे दिमाग में समझदारी का

कीड़ा घुस ही नहीं पाया

फिर क्यों कह रहे हो

कि थोड़ा विचार कर लो।

चलिए आप भी क्या सोचेंगे

किस बेवकूफ से पाला पड़ा,

अपनी समझदारी का एक दो कीड़ा

मुझे भेंट कीजिए,

मेरे दिमाग में घुसाने का इंतजाम कीजिए

फिर कुछ सोचने विचारने को कहिए।

वरना चुपचाप रहिए

मैं आपसे ज्यादा समझदार हूँ

आप हद से ज्यादा बेवकूफ हैं

यह स्वीकार करिए

और फिर सोचने के बारे में

मुझसे कभी भी न कहिए,

अपने आपके बेवकूफ होने का

कम से कम प्रचार तो न करिए।

हाँ! एक बात और राज की बताता हूँ

मैं कितना बड़ा बेवकूफ हूँ

यह समझने के लिए

दो चार जन्म और इंतज़ार कीजिए,

तब तक बेवकूफों का भी

थोड़ा बहुत सम्मान तो कीजिए।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921