कविता

उचित या अनुचित

 

क्या कहें हम खुद को

कैसे समझाएं एक दूजे को

जब हम खुद ही नहीं जान पाते

आखिर समस्या क्या है?

या समस्या की जड़ कहाँ हैं?

बस रो कल्पकर रह जाते हैं

दोषी नहीं हम फिर भी

खुद को दोषी मानते हैं,

औरों की खुशियों की खातिर

अपनी खुशियाँ भुलाते हैं।

फिर भी पीड़ा सहते हैं

रोकर रह जाते हैं।

क्योंकि कुछ और नहीं कर सकते हैं,

अपनी ओर उठती उंगलियों को

देख कर सहम जाते हैं,

विरोध करने की भी आदत नहीं है

दूसरों की भावनाओं को नजरअंदाज

जानबूझकर कर ही नहीं पाते हैं,

बस इसीलिए तो हम आँसू बहाते हैं।

मगर चिंता ये भी है

कि आपको अपनी भूल का

जब तक एहसास होगा

तब हम आपके बीच शायद ही हों।

तब आप क्या करोगे?

किस पर बरसकर अपने मन के भाव

व्यक्त कर अपनी पीड़ा बाँट पाओगे?

नेकी कर दरिया में डाल का

सिद्धांत हमारा पावन है,

अपनी दुनिया अपना जीवन

बस यूं ही मनभावन है।

अब तक जी रहे हैं हम शायद

यही आपका गम बड़ा है,

पर मैं कुछ कर भी.नहीं सकता

क्योंकि इस पर मेरा वश जो नहीं।

पर आप सोचिए खुद से खुद के लिए

जो आपने बर्ताव किया मेरे साथ

वो कितना उचित या अनुचित है

और दुआ स्वीकार कीजिए मेरी

मुस्कराएं और बहुत खुश रहिए,

जो भी हुआ अच्छा या बुरा

उसे भूल जीवन पथ पर आगे बढ़िए।

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921