गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आज मेहरबान ही करतार है
नाम जिसने ले लिया भव पार है

देख कोई कुछ बिगाड़ेगा नहीं
झेल लो यह आज जिसका वार है

आँधियाँ करती हुकुमतें हैं यहाँ
पर चला ही जा रहा संसार है

फँस जहाँ भी हो गयीं कश्तियाँ
है किनारा या वहीं मँझधार है

क्या बचेगा उन निगाहों से भला
हो रहा धोखे का बंटाढार है

दूर तक पानी ही पानी दिख रहा
दैत्य जैसे हो खड़ा उस पार है

आत्मा परमात्मा का है मिलन
देख लीला का न पारावार है

है भरोसा हर समय ही आपका
आप जैसा कौन तारन हार है

सत्य का जब नाम गूँजे तो सुनो
फिर किसी का ही हुआ उद्धार है

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’