गज़ल
होनी थी जितनी बारिश-ए-इकराम हो चुकी
अब आओ घर को लौट चलें शाम हो चुकी
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किस्सा-ए-गम अपना उनको जब लगा कहने
बोले वो ये खबर तो कब की आम हो चुकी
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पहने हुए थी शर्म का जेवर जो कल तलक
वो आज भरी बज़्म में नीलाम हो चुकी
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मर्ज़ी तेरी बेशक न करे तू मुझे कबूल
ये जिंदगी मेरी तो तेरे नाम हो चुकी
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ये मर्ज़ लाइलाज है कहता है चारागर
दुआ करो कि हर दवा नाकाम हो चुकी
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।