पुस्तक समीक्षा

असम के शहीद स्वतंत्रता सेनानी

सूचना क्रांति के इस युग में भी पूर्वोत्तर भारत और शेष भारत के बीच अपरिचय का हिमालय यथावत खड़ा है I अपने ही देश के एक महत्वपूर्ण भूभाग के बारे में लोगों की जानकारी अधूरी और भ्रांतिपूर्ण है I इस स्थिति में असम के स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्य और त्याग की महागाथा से देशवासियों की अनभिज्ञता कोई आश्चर्य की बात नहीं है I असम की वीरप्रसू धरती पर मुगलों की विशाल सेना को भी परास्त होना पड़ा था और लचित बरफुकन के नेतृत्व में अहोम सेना ने मुगलों के अहंकार को मिट्टी में मिला दिया था I भारत के अन्य भागों की तरह असम में भी राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ I उत्तर-पूर्व में 1857 के सिपाही विद्रोह का मुख्य केंद्र असम था I असम के क्षुब्ध नरेशों और कुलीनों ने विद्रोह को हवा दी I 1921 के असहयोग आंदोलन के कारण असम में काफी उथल-पुथल हुआ I टी.आर.फूकन, एन.सी.बरदोलोई, कनकचन्द्र शर्मा, एम.तायबुल्ला एवं चन्द्रनाथ शर्मा जैसे नेताओं ने असम के विभिन्न भागों में सभा आयोजित कर लोगों को स्वदेशी अपनाने तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया I वर्ष 1921 में महात्मा गांधी के असम दौरा से असहयोग आंदोलन को अधिक गति मिली I सभी क्षेत्र के लोग स्वतंत्रता संग्राम रूपी महायज्ञ में शामिल होते गए और देखते ही देखते असम में आंदोलन ने व्यापक रूप ले लिया I स्वंत्रता संग्राम में असम के अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन दुर्भाग्यवश असंख्य स्वतंत्रता सेनानी गुमनामी के अँधेरे में खो गए अथवा उनके स्तुत्य अवदानों की चर्चा बहुत कम होती है I हिंदी में असम अथवा पूर्वोत्तर के स्वतंत्रता सेनानियों के योगदानों का आकलन करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया है, लेकिन हर्ष की बात है कि सौमित्रम जी ने अपनी पुस्तक “असम के शहीद स्वतंत्रता सेनानी” के माध्यम से एक बड़े अभाव की पूर्ति की है I उन्होंने अपनी पुस्तक “असम के शहीद स्वतंत्रता सेनानी” में उन क्रांतिकारियों की वीरगाथा का समग्र आकलन प्रस्तुत किया है जिन्होंने देश के स्वातंत्र्य यज्ञ में अपना सब कुछ होम कर दिया था I यह पुस्तक असम के शहीद स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति लेखक की विनम्र श्रद्धांजलि है I इसमें असंम के अनेक अल्पज्ञात और अख्यात महापुरुषों को भी शामिल किया गया है जिनकी महागाथा से देशवासी अभी तक अपरिचित थे I स्वाधीनता आन्दोलन में असम के आदिवासियों, किसानों और महिलाओं ने भी अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज की थी I असम के चाय बागानों के मजदूरों ने भी स्वंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन उनमें से हम चंद सेनानियों के नामों से ही परिचित हैं I पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर असम की महिलाओं ने भी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध शंखनाद किया था और देश के लिए आत्मबलिदान किया था I कनकलता बरुआ, भोगेश्वरी फुकनानी तथा कुमली देवी के अद्भुत शौर्य की महागाथा की चर्चा के बिना भारतीय स्वाधीनता का इतिहास अधूरा है I अपने प्राणों की आहुति देकर कनकलता ने त्याग और बलिदान का ऐसा आदर्श स्थापित किया जिससे आज भी भारतवासी प्रेरणा ग्रहण करते हैं I उनकी स्मृति में बारंगबाड़ी में स्थापित कनकलता मॉडल गर्ल्स हाई स्कूल आज भी नई पीढ़ी को देश के लिए आत्मोत्सर्ग करने की प्रेरणा देता है I मणिराम देवान असम के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे I उन्होंने ही पहली बार अंग्रेज अधिकारियों को बताया था कि असम की जलवायु और मिट्टी चाय बागान के लिए अनुकूल है I वे चाय का उत्पादन करनेवाले प्रथम भारतीय थे I बाद में वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े I उन पर 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के विरुद्ध षड्यंत्र करने के आरोप लगे और 26 फ़रवरी 1858 को जोरहाट जेल में उन्हें सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई I उनके साथ ही पियली बरुआ को भी फाँसी दे दी गई I स्वाधीनता संग्राम में कुशल कुँवर का योगदान अविस्मरणीय है I अंग्रेजों ने 15 जून 1943 को रेल दुर्घटना के झूठे आरोप में जोरहाट जेल में कुशल कुँवर को फाँसी दे दी थी I 18 सितम्बर 1942 को जब भोगेश्वरी फुकनानी बरहमपुर में राष्ट्रीय ध्वज को लेकर अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ अहिंसक विरोध मार्च कर रही थीं तो उन्हें गोली मार दी गई I स्वाधीनता संग्राम में हेमराम बरा, कलाई कोच, तिलक डेका, हेमराम पातर, ठगीराम सूत, लक्ष्मीकांत हजारिका, मुकुंद काकोती, मनबर नाथ, कमला मिरी, निधानुराम राजवंशी, मदन बर्मन, तिलेश्वरी बरुआ आदि की शौर्यगाथा के उल्लेख के बिना स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अपूर्ण है I सौमित्रम जी ने अपनी पुस्तक में असम के शहीद स्वतंत्रता सेनानियों की वंशावली भी प्रस्तुत की है जिसके कारण पुस्तक की गुणवत्ता और प्रामाणिकता बढ़ गई है I असम के इतिहास में रुचि रखनेवाले शोधकर्ताओं के साथ-साथ आम पाठकों के लिए भी यह पुस्तक उपादेय है I
पुस्तक-असम के शहीद स्वतंत्रता सेनानी
लेखक-सौमित्रम
प्रकाशक-लिपि कम्पोज, गुवाहाटी
वर्ष-2021
मूल्य-150/-
पृष्ठ-120

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]