कविता
हालातों का मज़ाक़ उड़ाने वाले
मत भूल कल नया सवेरा होगा।
ग़ैर पैरों में बेड़ियाँ लगाने वाले
है ज़िद हमें पूरा हर फेरा होगा।
हर क़दम पे काँटे जमाने वाले
हर ज़र्रे पे फूलों का डेरा होगा।
षड्यंत्रों का जाल बिछाने वाले
तेरी चालों पे कभी बखेरा होगा।
पद-अमीरी का गाज गिराने वाले
हमें सम्भालने वाला भी बेरा होगा।
मुखौटों से ख़ुद को छिपाने वाले
बेनक़ाब चेहरा भी कभी तेरा होगा।
किसी प्रदीप्त दिये को बुझाने वाले
मत भूल की कभी रौशन सवेरा होगा।
तेरे हर आज से हमें झुकाने वाले
है क़सम कि हर कल मेरा होगा।
— प्रदीप चौहान