ग़ज़ल
केवल अपना कर्ज़ वसूला छोड़ दिया
ये कम है क्या, उसने ज़िन्दा छोड़ दिया
उसके राह बदलने पर हंगामा क्यूँ
तुमने भी तो अपना रस्ता छोड़ दिया
हुस्न अदा जलवों का है किरदार यही
दिल से खेला, तोड़ा, तन्हा छोड़ दिया
प्यार वफ़ा सम्मान समर्पण अपनापन
ख़ुदग़र्ज़ी में हमने क्या क्या छोड़ दिया
ज़िक्र हमारा छोड़ दिया जबसे उसने
हमने भी यादों में जाना छोड़ दिया
झूठ बुलंदी पर है जबसे हम सब ने
ड़र के ड़र से सच का चर्चा छोड़ दिया
उसने मन से सुलझाने की कोशिश की
बंसल ने भी उलझा मुद्दा छोड़ दिया
— सतीश बंसल