मुक्तक/दोहा

आँसू

खुशी गम बेबसी का अहसास करा देता हूँ,
आँख से निकला तो, जज़्बात बता देता हूँ।
खुशी में झिलमिलाता, दुःख बेबसी में बहता,
हर अवसर उपस्थिति का अहसास करा देता हूँ।
ससुराल जायें बेटियां, या मैके की चौखट आती,
माँ की आंखों से चाहत बन, जार जार रो देता हूँ।
बेवफ़ाई हो किसी की, अथवा इन्तजार की घड़ियां,
तडफ देखी नहीं जाती, मैं आंखों को भिगो देता हूं।
अश्क बन कर आँख में, नम होकर कभी ठहरता हूँ,
कभी दरिया सा बन बहता, रोके से नहीं ठहरता हूँ।
मृत्यु पर भी बह जाता, जन्म पर भी नजर आता,
जाति- धर्म, नर- मादा, न सीमाओं पर ठहरता हूँ।
— अ कीर्ति वर्द्धन