कविता

तरीका है वह जीने का!

तरीका है वह जीने का!
सभी सीखने लगे हैं, हाय रे!
हर बात पर सिर हिलाते
हाँ, हाँ कर स्वर में स्वर मिलाते
जरूरत पड़ने पर नाटक चलाते
अपने आपको बचाने में
थोप देते हैं अपनी गलतियाँ भी
आसानी से दूसरों पर
नकली को असली साबित करते
मीठे स्वर में बोलना हाँ, हाँ
सरल तरीका है वह
इस दुनिया में जीने का
झूठ बोलकर भी
अपने आपको संभालकर चलना
चालाकी है वह, बुद्धिजनों की।
बहुत कुछ बदला है जग में
दिमाग से चलना, दिमागों से खेलना
विशेषता है आधुनिक युग की
दूसरे को बेवकूफी बनाना
भविष्य के प्रति सुख भोग की लालसा
अधिकार अजमाने की कुटिल अभिलाषा
मन की बड़ी विकृति है,
युद्ध है यह दिमागों का
ख़तरा है आगामी पीढ़ी का
मनुष्य होकर साथ – साथ चलना
पराजितों की कल्पना मानने लगे
भिन्नता में एकता स्थापित करना
भली – भांति समझना आसान नहीं होता
असहाय जनता का
सबके साथ चलने के मोह में
एक दौड़ है, श्रम के जाल में उनका।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।