नववर्ष की चुनौतियां और तैयारियां
नववर्ष के साथ नयी नयी
चुनौतियां भी कम नहीं है,
कोरोना का नया वैरिएंट अभी से धमका रहा है।
राजनीति का पराभव
किसी खतरे से कम नहीं है,
नेताओं के बिगड़ते बोल
देश की मानसिकता दूषित कर रहे हैं,
स्वार्थ में अंधे नेता
देश के लिए जोंक से कम नहीं हैं।
जेल में नेता विधायक सांसद की अब बात क्या करें
मंत्री भी अब तो जेल से ही मंत्रालय चला रहे।
अराजकता और आतंकवाद
फैलने/फैलाने के खतरे बरकरार हैं,
देश को अस्थिर और कमजोर ही नहीं
षड्यंत्र कर देश को हर स्तर पर
नीचा दिखाने का प्रयास करते रहने वाले
देश में कथित रहनुमा भी कम नहीं हैं।
नारियों में भय आज भी बरकरार है
हर बात पर सरकार पर
आरोप लगाने वालों की भरमार है।
संसद विधानसभाएं अखाड़ा सी
अब लगने लगी हैं,
जनता के धन पर बेशर्मी से नृत्य की
जैसे रीति बन गयी है।
बेरोजगारी डरा रही है,
बढ़ती जनसंख्या भारी पड़ रही
जनसंख्या नियंत्रण चुनौती है,
जनसंख्या नियंत्रण बिल
अभी टेढ़ी खीर लगती है।
अल्पसंख्यक बहुसंख्यक का खेल
खतरनाक हो रहा है,
लगता है जैसे हमारे लोकतंत्र को
हर दिन डरा है,
समस्याएं स्वास्थ्य, शिक्षा की
अभी भी कम नहीं हैं,
हमारी सरकारें प्रयास भी
कम नहीं कर रही हैं।
संवैधानिक संस्थाओं पर हमले
हमारी व्यवस्था को मुँह चिढ़ा रहे हैं,
तैयारियों पर चुनौतियां भारी पड़ रही हैं।
देश की अर्थव्यवस्था को
मुँह चिढ़ा रही हैं।
हम भी कम नहीं हैं,
हाथ पर हाथ धरे सरकार का मुंह ताकते हैं।
सुविधाएं सब सरकार से ही चाहते हैं
रेवड़ी संस्कृति की तारीफ कर रहे हैं। शंंश
साथ ही सरकार की राह में
रोड़े अटकाने में पीछे कहाँ हैं?
चुनौतियों और तैयारियों का
कोई मेल नहीं है,
बाहर भीतर की कैसी भी चुनौतियां
सरकार हर चुनौती से निपट सकती है
मगर उसकी हर तैयारी में
हम आप ही नित नयी
दीवार बन रहे हैं,
देश के विकास में काँटे बिछा रहे हैं।
औरहम बड़ी शान से आज भी
अंग्रेजी नववर्ष मना रहे हैं
अपनी गुलाम मानसिकता का ढोल पीट रहे।