कविता

नववर्ष आ गया

नववर्ष आ गया

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आखिर देखते देखते

लो तेईस भी आ गया

स्वप्न नये दिखला गया,

था जिसका इंतज़ार

मन था बेकरार

वो समय भी आ गया।

बाइस की भी

ऐसी ही बेकरारी थी

हम मानें न मानें मगर

बीस इक्कीस की तरह बाइस भी

सबक बहुत सिखला गया।

हम चाहकर भी सबक

सीखना नहीं चाहते,

हम पर नशा सा छा गया

नववर्ष आज फिर आ गया।

बीस इक्कीस की तरह बाइस भी

स्वप्न बहुत दिखला गया,

न सोच है न कोई विचार

कल्पनाओं को उड़ान दे गया

नववर्ष फिर आ गया।

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921