आत्मकथा

अलविदा 2022, स्वागत 2023

 

मां शारदे की कृपा से २०२२ का संघर्षमय समापन संभवतः मेरी अब तक की जिंदगी का चमत्कार ही है और यह चमत्कार मां शारदे का आशीर्वाद मिश्रित साहित्यिक जगत की अनेक प्रतिष्ठित हस्तियों, माता पिता तुल्य अग्रज, अग्रजा  वरिष्ठों, हम उम्र और छोटे भाई बहनों और सबसे खास उन आभासी दुनिया की छोटी, बड़ी बहनों का स्नेह दुलार आशीर्वाद और अपनत्व सरीखे दिशा निर्देश का परिणाम है। विश्वास कीजिए जो बड़ी हैं उनसे तो कम मगर कई छोटी बहनों से मुझे आज भी डर लगता है। ताज्जुब में कि हम कभी मिले नहीं है। मगर छोटी बहनों के सर्वाधिकार लड़ने के खौफ से कांप जाता हूं।खैर….। यह मां शारदे की बड़ी कृपा है कि आज मेरा साहित्यिक परिवार कल्पनाओं से भी बहुत बड़ा है। जिसकी परिधि सात समंदर पार तक है। मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि ऐसा भावनात्मक अपनत्व अच्छे अच्छों के भी नसीब में नहीं होता। वर्तमान में मेरी कुल जमा पूंजी यही है। जिसकी बदौलत मैं लड़खड़ाने के बावजूद संभल पाने में सफल हो पा रहा हूं।

२०२२की पहली तिमाही से आभाषी दुनिया से मंचीय दुनिया में कदम रखकर आगे बढ़ने का मौका मिला। व्यक्तिगत मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ।जो अनवरत जारी है। स्वास्थ्य की दुश्वारियां परीक्षा लेती रहीं।कई विशेष अवसर स्वास्थ्य कारणों से हाथ से फिसल गए।अनेक उपलब्धियां हासिल हुई।अनेक नये संपर्क बने तो कुछ प्रगाढ़ संपर्क संबंधित के अहमं की वजह से मन कसैला कर गये। अनेक संस्थाओं,पटलों पर जिम्मेदारी मिली तो सनातन धर्म परिषद और प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा जैसी बड़ी संस्थाओं में भी बड़ी जिम्मेदारी मिली। आभासी रिश्ते भी वास्तविक रिश्ते में बदल गये। राखी का बंधन दिल को छू गया। कुछ लोगों से मुलाकात का सुनहरा अवसर हाथ से फिसल गया।तो कुछ मुलाकातें अप्रत्याशित रहीं।

इस वर्ष २०२२ में बड़ी मां के अलावा प्रेरक व्यक्तित्व वरिष्ठ कवि श्रद्धेय यज्ञराम मिश्र यज्ञेश जी और आभासी रिश्ते की बड़ी बहन वरिष्ठ हस्ताक्षर कमलेश सक्सेना सहज दीदीऔर कुछेक अन्य साहित्यिक विभूतियों का दुनिया से जाना हिलाने वाला रहा।अनेक साहित्यिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ हुई दुर्घटनाओं न विचलित किया।

सबसे अंत में अक्टूबर २२ में पक्षाघात के दूसरे प्रहार ने निजी क्षति पहुंचाई। परंतु अनगिनत लोगों का संबल हौसला देता रहा। अनेक साहित्यिक विभूतियों काघर आना, मिलकर हौसला बढ़ाना अमूल्य निधि है। जिसकी कल्पना दिवास्वप्न सी लगती है। परंतु यही तो अपनापन है।जो आभासी माध्यम से शुरू तो हुआ लेकिन वास्तविकता के धरातल पर आ पहुंचा।

दो दर्जन से अधिक पुस्तकें समीक्षार्थ प्राप्त हुई। कुछेक को छोड़कर अधिसंख्य स्वास्थ्य कारणों से अभी तक अपठनीय हैं।जिसका खेद भी है।

अनेक खट्टी मीठी यादों मिश्रित २०२२को बिना किसी शिकवा शिकायत के अलविदा।२०२३ का स्वागत

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921