कविता

नववर्ष पर आप भी खुश हो लीजिए

आइए!हम भी नववर्ष की खुशियों में डूब जायें
अपनी परंपरा अपने संस्कार को ठेंगा दिखाएं
और बड़ी बेशर्मी से नववर्ष का हुड़दंग मचाएं
अपने नववर्ष का तो हमें भान भी नहीं होता
अंग्रेज़ी नववर्ष पर खूब नाचें, गाएं,इठलाएं।
अपनी तो कोई गरिमा या स्वाभिमान नहीं है
गैरों ने जो लकीर खींच दी बस वो ही अपना मार्ग है।
जन्मदिन पर केक काटकर हम बड़ा खुश होते हैं।
मां बाप और बड़ों का पैर छू आशीर्वाद लेने में शर्माते हैं
आधुनिकता की आड़ ले वैलेंटाइन डे मनाते हैं
फुहड़ता का नंगा नाच बड़े गर्व से दिखाते हैं।
बड़ा दिन की समझ भला है अब कितने लोगों को
अब तो क्रिसमस डे मनाते और अपने बच्चों को
सेंटाक्लाज के किस्से कारनामे सुनाते हैं
हम बहुत आधुनिक हो गए हैं भाई बहनों,
अपने मां बाप हमें अब गंवार लगने लगे हैं।
चैत्रमासी सनातन हिन्दू नववर्ष हम क्या जानें
आप कुछ भी कहो, हम तो अंग्रेजी नववर्ष ही मनाएंगे।
अपनी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं का
खुल्लम खुल्ला बेशर्मी से मज़ाक उड़ाएंगे
आधी रात को खूब नाचेंगे हुड़दंग मचाएंगे
अपने आपको मुंह चिढ़ाएंगे और ज़श्न मनाएंगे।
कथित नववर्ष की मेरी भी शुभकामना ले लीजिए
भगवान आपका भला करें, आप खुश हो लीजिए।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921