लेखस्वास्थ्य

विश्व कैंसर दिवस:कैंसर से हारना नहीं, उसे हराना है !

अनीता ( बदला हुआ नाम ) 45 वर्षीय ग्रहणी है और दो जवान बच्चों की माँ है। एक दिन नहाते हुए अपने स्तन की जांच कर रही थी तो उसे मटर के दाने के आकर के सामान एक गाँठ महसूस हुई, तो वो एक पल के लिए ठिठुर गई, कुछ घबरा सी गयी। सोचने लगी कही यह कैंसर तो नहीं। दरअसल उसकी माँ को आज से 20 साल पहले जब स्तन के कैंसर का इलाज़ करने वाले डॉक्टर ने उसको समझाया था की हालाँकि सिर्फ कुछ ही प्रतिशत में जब माँ या दादी या परिवार में किसी अन्य महिला को स्तन का कैंसर हो तो उसकी बेटी को भी हो सकता है, तब से अनीता सचेत रहने लगी है । उस डॉक्टर के बताए हुए तरीके से वो समय समय पर अपने दोनों स्तनों की खुद जांच करती रही । और आज जब उसे गांठ महसूस हुई तो वो बिना समय गंवाए अपने डॉक्टर से मिली। उसके स्तन की गाँठ का एक सुई से एफएनएसी (फाइन निडिल एस्पिरेशन साइटोलॉजी) बारीक सुई से गांठ की भीतरी तहों को कुरेदकर वहां हुई कोशिकाओं को उसी सूई से खींचकर निकाला जाता है और माइक्रोस्कोप से उसकी जांच की जाती है का जो प्रशिक्षण किया गया तो वो स्तन कैंसर की पहली स्टेज का कैंसर निकला।

यह सुनकर अनीता दंग रह गई। उसका सर घूमने लगा और उसे अनेक आशंकाएं घेरने लगी। उसने सुना था की जब किसी को कैंसर हो जाता है तो वह शरीर में तेजी से फ़ैल जाता है और कुछ ही वर्षो बाद इंसान मर जाता है।

अनीता के डॉक्टर ने उसकी सारी आशंकाओं को दूर करते हुए प्यार से समझाया, ” अनीता जी, आप घबराए नहीं। यह तो पहली स्टेज का कैंसर है। आप विश्वास और हौसला रखिये, अब कैंसर का बहुत ही कारगर इलाज हो रहा है। ”

अनीता का इलाज शुरू हुआ और 6 महीने तक चला। हालांकि यह 6 महीने तक इलाज जिससे उसके स्तन से गांठ को निकल कर कीमोथेरेपी के 8 साइकिल, 21 दिनों बाद लगते थे, बेहद कष्टदायक थे लेकिन जब डॉक्टर ने उसे एक साल फॉलो उप पर चेक अप करते हुए उसके सफल इलाज और कैंसर से मुक्त होने की बधाई थी तो उसने राहत की सांस ली। आज 25 साल बाद उसके पोती की शादी है।

अनीता की तरह लाखों लोगों को जब अपने शरीर के किसी भी अंग के कैंसर का पता चलता है तो वो मायूस हो जाता है और सोचने लगता है की यह क्या हो गया, अब वो मर जायेगा और इसी तरह सोचते सोचते या इधर उधर भटकने के बाद कई बार अपना कीमती समय गवा देता है। और जब उनकी तकलीफ बड़ जाती है तो कैंसर दुसरे अंगों तक पहुंच जाता है जो घातक सिद्ध हो सकता है। पर अनीता की तरह पहले ही चरण में जब शरीर में कोई गाँठ हो या थकान, वजन का काम होना, त्वचा में परिवर्तन , आंत्र या मूत्राशय की आदतों में परिवर्तन, लगातार खांसी या सांस लेने में तकलीफ होना, खाना निगलने में कठिनाई, आवाज़ में परिवर्तन , खाने के बाद लगातार अपच या बेचैनी, लगातार पेट दर्द, लगातार बुखार या ऐसा कोई भी लक्षण जो साधारण इलाज से भी न जाये तो इसका प्रशिक्षण जरूर कराये।

कैंसर किसी को भी, किसी भी उम्र में , शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। महिलाओं में स्तन और गर्भशय के मुँह का कैंसर जिसको सर्वाइकल कैंसर कहते है प्रमुख है , जबकि पुरषों में प्रमुख रूप से मुख, गले , फेफड़ों, लिवर और प्रोस्टेट कैंसर प्रमुख कैंसर है, जबकि पेट, पैंक्रियास, आंत के कैंसर दोनों महिलाओं और पुरषों में होते है। विश्व स्वास्त्य संगठन के अनुसार कैंसर विश्व स्तर पर मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है, अनुमानित 10 मिलियन से अधिक मौतों या छह मौतों में से एक के लिए के लिए जिमेवार है। आई की एम् आर की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में दस में से एक वयक्ति को कैंसर होने का खतरा है।

जब भी किसी को कैंसर होता है तो उसके जेहन में ये प्रश्न आता है की कैंसर क्या है, उसको क्यों हुआ ? कैंसर आनुवंशिक बदलावों के कारण होता है जिसका सम्बन्ध हमारे वातावरण , जीवन शैली , प्रदुषण और खनिज , सब्ज़ियों और फलों की खेती बाड़ी में प्रयोग होने वाली कुछ हानिकारक किटकनाशक दवाइयों और केमिकल के अधिक प्रयोग , रोज़ मरा की ज़िन्दगी में इस्तेमाल में होनी वाली वस्तुएं में खतरनाक केमिकल , तम्बाकू और शराब है। यहाँ तक की कई तरह के चेहरों का सौंदर्य बढ़ाने के लिए प्रसाधनों में केमिकल की अधिक मात्रा में लम्बे समय तक प्रयोग से भी कैंसर हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के लांसेट पब्लिक हहेल्थ अनुसार एक बूँद शराब से भी कैंसर हो सकता है। लांसेट पब्लिक हेल्थ के अनुसार स्त्री स्तन कैंसर और आंत के कैंसर समेत 7 कैंसर में शराब के सेवन का सीधा कारण बताया गया है।

वैश्विक स्तर पर कैंसर के उन्मूलन के लिए जागरूकता फैलाने एवं इससे बचाव के उपायों पर आम लोगो तक लाने के लिए प्रतिवर्ष 4 फ़रवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व कैंसर दिवस की थीम है ” क्लोज द केयर गैप, ” यानी कैंसर केयर के हर स्तर पर अपेक्षाओं और वास्तविकताओं में गैप को दूर करने का प्रयास करना है । कैंसर का मुक़ाबला घबराकर, मिथ्यों या सचाई को नकार कर, हारकर नहीं, हौसले और विश्वास से इसका इलाज कराया जा सकता है, कैंसर से हारना नहीं, इसे हराना है ।

-डॉक्टर अश्वनी कुमार मल्होत्रा

डॉ. अश्वनी कुमार मल्होत्रा

मेरी आयु 66 वर्ष है । मैंने 1980 में रांची यूनीवर्सिटी से एमबीबीएस किया। एक साल की नौकरी के बाद मैंने कुछ निजी अस्पतालों में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम किया। 1983 में मैंने पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज में बतौर मेडिकल ऑफिसर ज्वाइन किया और 2012 में सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद से रिटायर हुआ। रिटायरमेंट के बाद मैनें लुधियाना के ओसवाल अस्पताल में और बाद में एक वृद्धाश्रम में काम किया। मैं विभिन्न प्रकाशनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी में लेख लिख रहा हूं, जैसे द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदुस्तान टाइम्स, डेली पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया, वॉवन'स एरा ,अलाइव और दैनिक जागरण। मेरे अन्य शौक हैं पढ़ना, संगीत, पर्यटन और डाक टिकट तथा सिक्के और नोटों का संग्रह । अब मैं एक सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और लुधियाना में अपनी पत्नी के साथ रह रहा हूं। हमारी दो बेटियों की शादी हो चुकी है।