हमारी श्रद्धांजलि
पिछले कुछ दिनों से मेरे मन में
एक डर सा समाया रहता था,
पर उसका आशय क्या है
बस! यही समझ नहीं आ रहा था।
पर आज सामने आ गया
जब मेरे सिर पर
अपनी अनवरत सुरक्षा छाया देने वाला
विशालकाय वटवृक्ष अचानक ही गिर गया।
निस्तेज, निष्प्राण, अनंत मौन होकर भी
हमें संबल दे रहा था,
जैसे अब भी हमारे पास होने का हमें
विश्वास दिला रहा था।
पर सच्चाई तो ये है
कि हमें झूठी तसल्ली दे रहा था।
या शायद हमें अपने कंधे मजबूत करने का
संदेश दे रहा था।
जो भी हो पर हमें भी पता है
अब वो वटवृक्ष न कभी खड़ा होगा
न शीतल हवा देगा
न ही हमें सुरक्षा मिश्रित भाव ही देगा।
क्योंकि वो तो जा चुका है
अपनी अनंत यात्रा पर बहुत दूर
जिसकी स्मृतियां हमें रुलाएगी
दूर होकर भी पास होने की कहानी गुनगुनाएंगी।
अपने आभामंडल से निकलने की जुगत
हमें टुकड़ों टुकड़ों में बताएगी।
हमें भी उससे निकलना ही होगा
इतना मान सम्मान तो हमें भी रखना होगा
उनकी तरह विशाल वटवृक्ष
तो बन नहीं सकते
कम से कम वृक्ष तो बनना होगा।
शायद हमारे आसपास रहकर
यही देखने का उनका भी मन होगा।
तब हमारा भी दायित्व तो बनता है
उनके सपने को साकार करना
उनकी ही तरह हर झंझावतों को
चीरते हुए आगे बढ़ना,
हर मुश्किल का सामने से सामना करना
और उनका सम्मान करना
अपने जीवन में निडरता से आगे बढ़ना।
यही तो प्रकृति का नियम है
जिसका पालन दुनिया कर रही है
और लगातार आगे बढ़ रही है
जिस पर अब हमें भी बढ़ना ही होगा,
ढाल जैसे रह चुके वटवृक्ष का
तभी तो मान सम्मान सुरक्षित रहेगा,
तब उनका सुरक्षा चक्र हमें
सदा ही महसूस होगा
उनके लिए यही हमारी श्रृद्धांजलि
और अशेष सम्मान होगा।