कविता

अन्न की बर्बादी न हो

व्यर्थ न जाए अन्न का दाना
नारी में न इसे बहाना
ये सब अब हो गया पुराना
आज तो है नया जमाना।
कम खाना ज्यादा फेंकना
फ़ैशन आज का यही बना,
अन्नपूर्णा का अपमान करना
आज हुआ सिद्धांत अपना।
दौलत जब अपने पास है
कीमत भी हमीं चुकाते हैं
जितना मन होगा खायेंगे
इच्छा होगी नाली में बहाएंगे।
आपको इतनी चिंता क्यों है?
लगता है पेट में दाना नहीं है
या फिर कोई ठेकेदार हो
या अन्नपूर्णा के गुलाम हो।
माना कुछ लोग तरस रहे हैं
आये दिन भूखे पेट सो रहे हैं
क्या तुम उनके खैरख्वाह हो
या उनकी इस हालत के लिए
केवल तुम ही जिम्मेदार हो।
मेरा पैसा मेरा अन्न
करना जो है, मेरा मन
तू क्यों समय बर्बाद कर रहा
अपना ही दुश्मन बन रहा।
इतनी चिंता मत कर भाई
अन्नपूर्णा न किसी की माई
खाओ पियो मस्त रहो
खाओ याौ बर्बाद करो
इस पर तो कोई रोक नहीं
न ही कोई कानूनी प्रतिबंध है।
ज्यादा फिक्र अगर तुम्हें है
शासन से जाकर गुहार लगाओ
अन्न की बर्बादी न हो
ऐसा कोई कानून बनवाओ।
हम सब बेशर्म हो गए हैं
बिना डंडे के समझते कहां है?
तभी तो इतने लोग रोज ही
भूखे सोने को विवश हो रहे,
खाने से ज्यादा खाने की बर्बादी है
इसलिए तो लोग भूखे मर रहे
बर्बादी रुक जाये जो अन्न की
तो जाने कितनों के पेट भरे रहें,
जाने कितने खिल जायें चेहरे
और अन्नपूर्णा भी हमसे खुश रहें।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921