कविता

जौहरी

हीरे की कीमत तुम क्या जानो
तुम हो एक कबाड़ का कबाड़ी
हीरे की परख जौहरी ही   जानें
जो हीरे की है एक      व्यापारी

डींग हॉकने वाला कभी ज्ञानी
नहीं हो सकता है     जग  में
विद्वता वो नहीं है कायनात में
जिसका  तमाशा हो  मेले में

ज्ञानवान कभी नहीं कहता है
वो है जग का ज्ञानी    मानव
पर ओछे लोग हर पल बकता
वो है ताकतवर   एक  दानव

अटकाने भटकाने से बेहतर है
करो काम की कुछ खेल यहाँ
बेवकूफ बनने से बेहतर     है
खुद को तराशो  जमाने में यहाँ

मूरख लोग विद्वता की झंडा
हर पल फहराते दीख जाता है
ज्ञानी पुरूष की ज्ञान पताका
कस्तुरी की तरह महक आता है

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088