कविता

व्यंग्य – शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं

पद और कुर्सी से बेवफाई किया हूं
मैंने खून चूसा अब बीमारी को चुसवा रहा हूं
जनता और शासन से धोखे का अंजाम समझ रहा हूं
शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं
शासन से वफादारी करना समझा रहा हूं
बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं
मैंने खून चूसा अब बीमारी को चुसवा रहा हूं
शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं
वर्तमान भारी तकलीफों को देखकर
दिल में उठी आवाज़ महसूस किया हूं
पद कुर्सी से जीवन भर हरे गुलाबी लिया हूं
 शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं
बीमारी पर लाखों खर्चा किया हूं
परिवार में अकेला पड़ा महसूस किया हूं
घूसखोरी का परिणाम महसूस किया हूं
शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं
जैसी करनी वैसी भरनी नजरों से देख रहा हूं
हरे गुलाबी का नतीजा देख रहा हूं
रिटायरमेंट के बाद बीमारी बेज्जती झेल रहा हूं
शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं
अय्याशी में जीवन बिता नतीजा भुगत रहा हूं
दाने-दाने को मोहताज हूं समझ रहा हूं
साथियों अब घूसखोरी करना मत समझा रहा हूं
शासन से बेवफाई का अंजाम भुगत रहा हूं
— किशन सनमुख़दास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया