इच्छाओं का अंत
कुछ ही दिनों में महेन्द्र फर्श से अर्श पर पहुँच गया। इसका कारण तारी के लड़के सुरिंदर के साथ अवैध गतिविधियों में संलिप्त होना था । पहले महेंद्र और सुरिंदर कार रिपेयरिंग का काम करते थे। दोनों का काम दिन-ब-दिन बढ़ने लगा। लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें चिट्टे के नशे की लत लग गई। उनका काम-धन्धा भी खत्म होता चला गया । लिहाजा गुलजारी तस्कर ने चिट्टे के कारोबार में उन दोनों को अपने साथ मिला लिया ।
इस काम में दोनों दोस्तों ने खूब पैसा कमाया। सुरिंदर ने जल्द ही यह धन्धा छोड़ दिया और ऑस्ट्रेलिया चला गया । लेकिन महेंद्र इस प्रलोभन में फंसता ही चला गया। उसकी महत्वाकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं । लइस गोरखधन्धे में अच्छी कमाई को देखते हुए वह पीछे नहीं हट सका। शहर में उसने कुछ ही दिनों में एक बहुत बड़ी कोठी बना ली और एक कार एजेंसी खोल ली। महेंद्र अपने दूसरे ही रूप में काले धंधे की कमाई के दम पर समाजसेवा करने लगा। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता बनकर और राजनीतिक नेताओं से जुड़े काले धन्धे के दलदल में फंसकर नशे बेचने वाला किंग बन गया। लेकिन उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि राजनीतिक दल उसका इस्तेमाल अपने लिए कर रहे हैं। अब वह कुख्यात नामी-गिरामी गैंगस्टर्स में शामिल हो गया। अपने क्षेत्र की हर लड़ाई में महेंद्र का हाथ होता। महेंद्र के माता-पिता की आंखों पर लालच की पट्टी बंधी हुई थी। महेंद्र द्वारा बेचे गए चिट्टे से अनेक माताओं के पुत्र युवावस्था में ही भगवान को प्यारे हो गए। डर के मारे किसी ने मुंह नहीं खोला। एक बार महेंद्र के माता-पिता ने उससे यह धंधा छोड़ने की मिन्नतें कीं लेकिन अब तक पानी पुलों के ऊपर से बह चुका था। एक प्रसिद्ध कहावत है कि एक लोहार की सौ सुनार की।
एक दिन मुखबिर की सूचना पर महेंद्र के घर पर छापा पड़ा। करोड़ों की संपत्ति, सोना-चांदी और बड़ी रकम के साथ-साथ लाखों रुपयों का चिट्टा उसके घर से बरामद हुआ। पुलिस मोहिंदर और उसके माता-पिता को गिरफ्तार कर अपने साथ ले गई। ट्रायल फास्ट ट्रैक पर चला। महेंद्र की सारी संपत्ति कुर्क की गई। महेंद्र के माता-पिता को कम सजा मिली, लेकिन महेंद्र को 10 साल के कठोर कारावास और 50 लाख के जुर्माने की सजा सुनाई गई। इससे उसकी काले धन से अर्जित सारी सम्पत्ति ऐसे ही चली गई। सच ही कहा गया है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है उसके लिए कुआं पहले ही तैयार होता है।
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन