दहेज प्रथा
अन्तरकाॅलेज वाद-विवाद प्रतियोगिता में अन्य काॅलेज के वक्ताओं के बाद बारी आई हमारे ही काॅलेज के मेधावी छात्र जीवन की । उसने भी ” दहेज प्रथा ” शीर्षक पर अपने विचार व्यक्त किए। उसने कहा, ” इसमें कोई संदेह नहीं कि दहेज माँगना और देना निन्दनीय काम है । जब वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है, दोनों रोज़गार में लगे हुए हैं , दोनों देखने-सुनने में सुन्दर है , उनकी पृष्ठ भूमि एक जैसी है तो फिर दहेज की मांग क्यों की जाती है ?”
मैंने भी अपने विचार कुछ यूँ रखे,” नि: सन्देह प्राचीनकाल से ही दहेज प्रथा प्रचलित है । परन्तु अब दहेज प्रथा अभिशाप है । आज दहेज का रूप अत्यन्त विकृत और कुत्सित हो गया है ।
अन्तत: प्रिंसिपल महोदय ने विजेताओ की घोषणा की। जीवन ने प्रथम स्थान प्राप्त कर बेहद वाह वाह लूटी। मंच से ही प्रिंसिपल जी ने वहाँ उपस्थित समस्त युवाओं को बिना दहेज लिए विवाह करवाने का प्रण लेने को कहा । सभी ने सहमति दी ।
जीवन व मैंने मालवा काॅलेज में एकसाथ स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की । एक ही कस्बे और रोज़ाना एक ही बस में सफर करते न जाने कब हम दो जिस्म एक जान बन गए। हम एक पल भी परस्पर दूर न होते । जब कभी हम एकांत में मिलते तो पुरूष स्वभाव अनुसार वह मेरे शरीर को स्पर्श करने का प्रयास करता तो मैं टोक देती । अभी नहीं विवाह के बाद। वह कहता, ” प्रेरणा! विवाह के बाद भी तो यही सब कुछ करना है तो अभी क्यों नहीं ?”
“न, न जीवन । मैं तेरी प्रेरणा हूँ। शारीरिक प्यार दो दिन का खेल है । यह प्यार थोड़ा है। यह तो हवस है ।” मैंने कहा
“अच्छा बाबा आगे से मैं तुझे टॅच नहीं करूँगा।”
चूँकि जीवन पी.एच.डी कंप्लीट कर चुका था और मैं एम.फिल । जीवन को बेतौर प्रिंसिपल व मुझे लेक्चरर की जाॅब अलग-अलग काॅलेज में मिल गई। हमारी मुलाकातें बदस्तूर जारी रहीं । घर वालों की सहमति से विवाह करवाने का भी फैसला हो गया ।
कोविड़-19 के चलते शिक्षा संस्थान बंद होते हमारी मुलाक़ातों में ब्रेक सी लगी। बस यही महामारी व ब्रेक हमारी दूरी का कारण बनी। जीवन का व्यवहार मुझे कुछ बदला सा लगा । फोन करने पर कभी बीमारी तो कभी व्यस्तता का बहाना लगाने लगा । हद तो तब हो गई जब उसने मेरा फोन पिक करना ही बंद कर दिया । मुझे विश्वसनीय सूत्रों से पता लगा कि जीवन के अपने काॅलेज की लेक्चरर कंचन से लव अफेयर चल रहा है। यह सुन मैं सन्न रह गई। एक दिन अकस्मात जीवन मुझे मिला तो मैंने आपे से बाहर होते उसे कहा, “अरे विश्वासघाती प्रेमी , क्या कमी थी मुझ में , बताओ जरा । सब झूठ था , फरेब था ।
“नहीं प्रेरणा, ऐसी कोई विशेष बात नहीं पर मैं अपने घर वालों के कारण असहाय हूँ। दरअसल लाॅकडाउन एवं कोविड़-19 महामारी के कारण मेरे पिताजी को फैक्ट्री में अत्याधिक घाटा पड़ गया तो फैक्ट्री के बंद होने की नौबत आ गई, तब कंचन के डैडी ने तुरन्त हमारी आर्थिक मदद कर हमें बचा लिया और साथ ही अपनी लड़की कंचन का विवाह मुझ से करने का वचन भी ले लिया । प्रेरणा मुझे माफ करना ।”
“हाँ, हाँ माफ ! बेहद भलेमानस हो । याद है वाद-विवाद प्रतियोगिता में ” दहेज प्रथा” पर बड़ी-बड़ी बातें की थी तूने पर यह बताओ कंचन के डैडी से लिया धन क्या है ? यह भी दहेज ही तो है । सुनो, जब तक तेरे जैसे दहेज लोभी इस धरा पर रहेंगे तब तक यह कलंकित समस्या बरकरार रहेगी। जा, मैंने अपना प्यार तेरे इस दहेज पर कुर्बान किया।”
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन