कैसा अभिमान करें
कैसा अभिमान करे
________________
कलुषित मन की मलीनता पे ,कैसा अभिमान करे |
मानवता बिसराकर मानव प्रभु का अपमान करे |
ईश्वर ने सृष्टि बसाई तब सौंदर्य बिखेरा था –
दोहन करने को अरे मनुज क्यों कर श्रमदान करे |
चौरासी लाख योनियों में जब, भटका तब यह तन पाया –
करके कुकर्म मनुजाद बने ,क्यों कर विषपान करे |
अपराधों से उर को पाटा, सिर धरकर पाप फिरे –
जननी का चाक कलेजा कर अपना गुणगान करे |
रिश्तों की मर्यादा तोड़ी संस्कृति का करे हनन-
नर होकर क्यूँ नारायण की,धरती शमशान करे |
मनु की संतान मनुज बनकर,मानवता धारण कर-
करके सुकर्म संसार सजा,जन- मन अभिमान करे |
नूतन निर्माण करे आओ नवता को धारे हम-
अरमान जगे उत्साह बढ़े,जग जय जयगान करे |
पावन करके मन प्राण अरे,करिए दृढ़ प्रज्ञ हृदय –
उर’मृदुल’ मृदुलता से पूरित,दुनियाँ यशगान करे |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)