कविता

कैसा अभिमान करें

कैसा अभिमान करे
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कलुषित मन की मलीनता पे ,कैसा अभिमान करे |
मानवता बिसराकर मानव प्रभु का अपमान करे |

ईश्वर ने सृष्टि बसाई तब सौंदर्य बिखेरा था –
दोहन करने को अरे मनुज क्यों कर श्रमदान करे |

चौरासी लाख योनियों में जब, भटका तब यह तन पाया –
करके कुकर्म मनुजाद बने ,क्यों कर विषपान करे |

अपराधों से उर को पाटा, सिर धरकर पाप फिरे –
जननी का चाक कलेजा कर अपना गुणगान करे |

रिश्तों की मर्यादा तोड़ी संस्कृति का करे हनन-
नर होकर क्यूँ नारायण की,धरती शमशान करे |

मनु की संतान मनुज बनकर,मानवता धारण कर-
करके सुकर्म संसार सजा,जन- मन अभिमान करे |

नूतन निर्माण करे आओ नवता को धारे हम-
अरमान जगे उत्साह बढ़े,जग जय जयगान करे |

पावन करके मन प्राण अरे,करिए दृढ़ प्रज्ञ हृदय –
उर’मृदुल’ मृदुलता से पूरित,दुनियाँ यशगान करे |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016