पहली मुलाकात
पहली मुलाकात की अजीब था आलम
सामने पत्थर पे बैठी थी मेरी जानम
सूरज भी छुप रहा था अस्ताचल में अस्त
झिझक् ने कर दी थी मेरी हालत भी पस्त
चाँद चुपके से बादल में छुपकर था मुस्कुराया
चाँदनी में पर्वत सागर दुधिया रंग में था नहाया
पपिहरा थी बाजू के डाली पर मौन होकर बैठी
हम दोनों की वो चुपके चुपके कर रही थी रेकी
उनका ऑचल हवा का झोंका में जब लहराया
फिजां में उनकी बदन की खुशबू था महकाया
हाथों में जब उनकी हाथ मैं अनायास में दबाया
शर्म से उनकी तन मन था बहुत शरमाया
गुपचुप बैठे थे हम दोनों एक दुसरे के ही। सामने
आज का दिन मेरे जीवन में रखता है कई मायने
साहस कर मैंने ही उनसे बात आगे था। बढ़ाया
फिर भी आपा खो कर मैने गुफ्तूगू कर ना पाया
मैंने चुपके से सोने की अंगूठी जेब से था निकाला
उनकी अनामिका तर्जनी में अंगूठी पहना डाला
शर्म से उनका चेहरा हो गई थी तब लाल लाल
मोहब्बत की रंग में वो खुद बन गई थी गुलाल
— उदय किशोर साह