सहे गये जुल्मों का हिसाब अभी बाक़ी है,
कहे गये अल्फ़ाज़ों का जवाब अभी बाक़ी है।
यूँ तो नक़ाब उतरे हैं कइयों के,
सने गये लहू के कतरों पर सवाल अभी बाक़ी है॥
हैं लोग भी सही अपनी वैचारिकता पर,
लेकिन उनके मुँह पर फेकने वाले तमाचे अभी बाक़ी हैं।
हूँ काबिल मैं भी कि दें दूँ मात उन्हें सलीक़े से,
लेकिन मेरे स्तर तक अभी उनका उठना बाक़ी है॥
सही हैं सब जिन्होंने तंज कसे, ठुकराया अपनी दहलीज़ पर,
लेकिन मेरी दहलीज़ पर अभी उनकी दस्तक बाक़ी है।
थी हार तो क्या बुरी बात है,
कम से कम चलती साँस के साथ मेरी कोशिश बाक़ी है॥
वक्त आएगा तो दूँगी जवाब तसल्ली से,
अभी थोड़े और हम पर इल्ज़ाम बाक़ी हैं॥
— रेखा घनश्याम गौड़