मुक्तक/दोहा

दोहे- सांसों में आलाप

भीतर सरगम तप रही सांसो में आलाप
सूरज अब करने लगा अंगारों का जाप।।

धूप अभी ऐसे चुभे जैसे होए बबूल
जिस्मों को है भेदती किरणें बनकर शूल।

फूलों के रंगत उड़ी कंचन देह निढाल
तितली बैठी ओट में अपने पंख संभाल ।

नमी चुराती अब हवा बेसुध, सारे पात
नव पल्लव के टूटते नरम दूधिया दांत।

कल तक बरगद धूप में करता था परिहास
झुलसी अब जब देह तो वह भी हुआ उदास।

कांधे पर सूरज उतर फूंक रहा है आग
जैसे गर्म सलाख से जिस्म रहा हो दाग।

लिए पोटली धूल की घूमे आज समीर
अंगारों को बांधकर सूरज छोड़े तीर ।

पनघट भी सूने हुए सूखे पोखर ,ताल
मेघराज कब आओगे धरती करे सवाल ।

— सतीश उपाध्याय

सतीश उपाध्याय

उम्र 62 वर्ष (2021 में) नवसाक्षर साहित्य माला ऋचा प्रकाशन दिल्ली द्वारा एवं नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा दो पुस्तकों का प्रकाशन कृष्णा उपाध्याय सेनानी कुटी वार्ड नं 10 मनेंद्रगढ़, कोरिया छत्तीसगढ़ मो. 93000-91563 ईमेल- satishupadhyay36@gmail.com