गांव कैसे छोड़ा होगा
कच्ची कली को राहगीर ने कैसे तोड़ा होगा
तुम क्या जानो
मैंने अपना गांव कैसे छोड़ा होगा
उस नीम शीशम सरसों की याद आई है
पैसा कमा लिया बहुत मगर फिर भी तन्हाई है
वह शहतूत के जामुन के पेड़ सुहाने लगते थे
पानी वाले दिन चंद दोस्त खेत में सारी रात जगते थे
खेत में साथ रहने वाला यहां एक भी परिंदा नहीं है
बेजान लोभी हर मानव यहां एक भी जिंदा नहीं है
भोग विलासिता इनके जीवन का लक्ष्य हो गया है
वो बोला मानस शहर की धुंध में कहीं खो गया है
देखकर शहर की भाव भंगिमा
मेरे मन ने कितनी बार मुझे झंझोड़ा होगा
तुम क्या जानो
मैंने अपना गांव कैसे छोड़ा होगा