खुशियां
खुशियां हर तरफ़ बिखरी पड़ी है
और तुझको अब भी ग़म हो रहा है
हैं तेरे हंसने के ये दिन
और पगले तू कितना रो रहा है
तेरे रोने से कुछ बदलेंगे यहां पर
जो दुःख है वो आएंगे यकीनन
हां मगर हंसने से कुछ कम लगेगा
तुझको बोझ इनका
जिनको ठोने में होंगी आसानी
गमों में रोना होती है नादानी
— अभिषेक जैन