प्यार भरी चांदनी रातें
वह भी क्या दिन थे जब होती थी रोज मुलाकातें
कट जाती थी यूँ ही जागते प्यार भरी चांदनी रातें
मुश्किल होता था बिताना इन्तज़ार में हर इक पल
मिलते थे जब खत्म नहीं होती थी वह प्यार की बातें
वह छुप छुप कर मिलना तुम्हारा देर से आना
मेरा गुस्सा हो जाना तुम्हारा प्यार से मनाना
रोज़ मिलना डर डर कर नित नए सपने सजाना
एक ही छाते के नीचे दोनों का आधे आधे भीग जाना
याद है मुझे वह तुम्हारा कालेज से वापिस आना
दोनों का सीधे काफी हाउस में घुस जाना
किनारे के मेज पर घण्टों बैठ कर बातें करना
वेटरों का वह हमारी तरफ देखना और मुस्कुराना
मुझे याद है लाइब्रेरी में तुम्हारा आना और बातें करना
बात करते हुए शर्माना और चेहरा सुर्ख हो जाना
किताबों का आदान प्रदान करना दिखावे के लिए
असल में किताब के बीच चिट्ठी छोड़ आना
छुटियों से पिछले दिन बहुत मायूस होना
दो महीने के लिए एक दूसरे से दूर हो जाना
यादों में कटते थे दिन रात चैन नहीं मिलता था
छुटियों के बाद मिलना जैसे बहार का लौट आना
फिर एक दिन ऐसा आया पढ़ाई खत्म हो गई
बिछुड़ गए एक दूसरे से बंद हो गया मिल पाना
नहीं भूलती वह चांदनी रात वह आखिरी मुलाकात
दोस्त बनाना लेकिन भूल कर भी किसी से दिल न लगाना
— रवींद्र कुमार शर्मा