मुक्तक
संसद भवन उद्घाटन का बहिष्कार कर रहे, करने दो,
निज स्वार्थ संस्कारों का बहिष्कार कर रहे, करने दो।
सदा सदा के लिए संसद का त्याग करो, अच्छा होगा,
नकारात्मक सोच लिये बहिष्कार कर रहे, करने दो।
जो नहीं सांसद, नहीं देश में जिनकी कोई भागीदारी,
कौन दिशा संसद दरवाज़ा, नहीं इसकी भी जानकारी,
बस विरोध के नाम पर ही, विरोध का खेल खेलते,
विपक्ष का काम अवरोध डालना, अगर हो सरकारी।
भारत का मान बढ़ रहा दुनिया में, गौरवान्वित हैं,
विश्व पटल पर भारत का सम्मान, सम्मानित हैं।
चीन पाक के दलाल, भ्रष्टाचार पोषक कुछ दल,
दलदल में फँसे कुछ नेता, दुनिया मे अपमानित हैं।
तय समय पर उद्घाटन होगा, यह तो तय है,
सत्य- सनातन सदा विजयी, यह तो तय है।
वर्तमान के गुनाहों का फल, भविष्य में होगा,
पाप का नाश धर्म की जय, यह तो तय है।
— डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन