गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वक़्त था वो जब मचलते हम रहे
क्या शमा रौशन कि जलते हम रहे

दिल हमारा एकदम-से चाँद तक
बल्लियों ऊपर उछलते हम रहे

रास्ता क्या अब दिशा ही बंद है
रोज़ जिस जानिब निकलते हम रहे

जीत लेने के लिए दिल यार का
हारकर हिकमत बदलते हम रहे

ख़ून पीकर भी हमारा ख़ुश नहीं
अश्क़ से जिनके पिघलते हम रहे

प्यार का जो मार्ग हमने चुन लिया
मंज़िलों को छोड़ चलते हम रहे

बालपन का दौर था वो जा चुका
झुनझुनों से जब बहलते हम रहे

— केशव शरण 

केशव शरण

वाराणसी 9415295137