मेनका की मी टू
“राजेश जी आप चांदनी चौक तरफ ही रहते हैं न ?” ऑफिस से निकलते ही डायरेक्टर साहब की स्टेनो मेनका ने पूछा.
“जी हाँ, वहीं मोड़ पर पहली गली में तीसरा मकान है हमारा.” ऑफिस में हाल ही नियुक्त क्लर्क राजेश ने बताया.
“हाँ, मुझे पता है. मैंने आपको उधर आते-जाते कई बार देखा है. मेरा घर भी चांदनी चौक के पास ही है.” मेनका ने बताया.
“अच्छा-अच्छा, फिर तो हम दोनों पड़ोसी निकले.” राजेश के मुँह से यूं ही निकल गया. आसपास खड़े सहकर्मी मुस्कुराने लगे.
“क्या आज आप मुझे अपनी बाइक पर लिफ्ट देंगे ? क्या है कि आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है.” मेनका ने आग्रह किया.
“हाँ-हाँ, क्यों नहीं. आइये बैठिए.” राजेश ने कहा और दोनों चल पड़े.
अब तो दोनों के बीच अक्सर इस प्रकार की हल्की-फुल्की बातचीत होती रहती. प्रायः दोनों साथ ही आते-जाते. मेनका तलाकशुदा थी, जबकि राजेश एक अविवाहित, खूबसूरत नौजवान था. दोनों को एक दूसरे का साथ खूब रास आ रहा था. दोनों किसी भी तरह से एक दूसरे को पाना चाहते थे. मौका भी उन्हें जल्दी ही मिल गया.
एक दिन मेनका ने उसे चाय के बहाने घर बुला लिया. उसी दिन दोनों दिन दुनिया से बेखबर एक दूसरे में खो गए. फिर तो अक्सर ऐसे ही मिलने लगे. ऐसे अन्तरंग के पल मेनका के घर में लगे सी.सी.टी.व्ही. कैमरे में रिकॉर्ड होते रहे.
हफ्ते भर बाद मेनका ने उससे विवाह का प्रस्ताव रखा. राजेश ने साफ़ मना कर दिया. वह तो बस मजा लेने और टाइम पास के लिए मेनका से सम्बन्ध बना रहा था.
मेनका अड़ गई, “शादी तो तुम्हें मुझसे करनी ही पड़ेगी मिस्टर राजेश. मैं कोई बाजारू रंडी नहीं, कि तुम मुझसे खेलकर पतली गली से निकल लो. यदि तुमने मुझसे शादी नहीं कि तो मैं शोर मचाकर अभी लोगों को इकठ्ठा कर लूंगी. फिर वे तुम्हारा क्या हाल करेंगे, बताने की जरूरत नहीं. ये सी.सी.टी.व्ही. कैमरा देख रहे हो न; इसमें सब कुछ रिकॉर्ड है. ‘मी टू’ केम्पेन का नाम तो सूना ही होगा. नौकरी तो जाएगी ही, तुम कहीं भी मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहोगे.”
बदनामी और नौकरी जाने के डर से उसने शादी के लिए ‘हाँ’ कर दी.
अगले ही दिन सुबह राजेश की लाश मिली. उसने अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी.
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा