सामाजिक

अब तुममे वो बात ना रही

अक्सर बागीचे में जब शाम के वक्त टहलने जाती तो बहुत सी सखियों संग बतियाते हुए बागीचे मे बहुत अच्छा लगाता है। लगता है कोई तो है जो मुझे सुन सके समझ सके। जिस तरह मेरी गृहस्थी, घर बार ठीक उसी तरह मेरी सखियों के भी अपने-अपने घर-बार जिसके अंतर्गत अपनी जिम्मेदारियों के तले खुद पर ध्यान देने का अधिक वक्त ही नहीं मिलता। ये तो शाम को बस कुछ फुर्सत के जैसे-तैसे कभी कभार वक्त निकाल बागीचे मे मिल लेती हम सभी सखियां। हम सखियों में जब कभी बात चीत हुई तो अक्सर एक दूसरे की जिंदगानी से कुछ हमें सीखने को मिलता। साथ ही एक दूसरे की परेशानियों को सुन एक दूसरे को सही राय भी देकर पूरी तरह न सही, पर कुछ हद तक तो समस्या का निदान मिल ही जाता। हाल ही मे सखियों संग ही बतियाते हुए एक सखी को उसके जीवनसाथी ने जो बात कही वो सच आज की दर्द-ए विडंबना है। सच सखी की बात सुन ऐसा लगा कि हमें भी कभी हमारे जीवनसाथी ने अगर ऐसी बात कह दी तो हम तो आंसूओं को अपने रोक ही नहीं पाएंगे। जानते हैं वो शब्द क्या थे?
वो शब्द थे अब तुममें वो पहली सी बात न रही। कितना दुख हुआ होगा मेरी सखी को ये सुन कर। मैं तो मात्र कल्पना मात्र से ही सिहर उठती हूं, कि कहीं अगर मेरे जीवनसाथी ने भी ये कह दिया तो?
जरा सोच के देखियेगा कि जो जीवनसंगिनी आपके लिए आपके द्वारा भरे मांग के सिंदूर के विश्वास के दम़ पर आपके लिए सर्वोसर लुटा देती है। उसे आप ऐसा कैसे कह सकते हैं। एक पत्नी एक नारी होने के नाते आपके वंशज को आगे बढ़ाने के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर एक नवजीवन को इस दुनिया में लाती है उस समय तो आप जब पिता बनते हैं कितना गौरवान्वित महसूस करते हैं गर्व होता है उसमें आपको अपनी पत्नी पर कि वह आपको औलाद दे सकी। औलाद होने के बाद वह तो जैसे खुद के लिए जीना ही भूल जाते थे रात रात भर जाग कर भी बच्चे का ख्याल रखना उसकी भूख मिटाने के लिए उसे रात को भी सीने से लगाकर दूध पिलाना यहां तक की यदि बच्चा रात को कपड़े गीले कर देता है तो वह भी एक मां है जो सब सहन कर लेती है कितना बलिदान देती है आपके वंशज को आगे बढ़ाने के लिए। भूल जाती है पहले की तरह खुद को संवारना भी, जिम्मेदारी के बोझ तले इतनी अधिक व्यस्त हो जाती है कि अपने लिए जीना ही भूल जाती है। साथ ही महिला जब एक नवजात को जन्म देती है तो उसकी शारीरिक बनावट में परिवर्तन व शिथिलता आती ही है ये स्वाभाविक ही है। पहले की तरह उसका शरीर नहीं रहता। आखिर क्यों? क्यों कि वह जो भी कर रही आपकी खुशी के लिए, आपके ही चेहरे पर मुस्कान बिखरने के लिए, आपको पिता नाम का महान पद दिलवाने के लिए फिर भी उसी को इस तरह से शब्दों के तीर से घायल करना क्या उचित है। महिलाएं कोई अपने घर मायके से पका-पकाया बच्चा नहीं लाती, ये तो आपकी ही उपज का नतीजा है जो आप दोनों के रिश्तों की गॉंठ को ओर भी अधिक मजबूत से बॉंधतआ है। तो क्यों अपनी पत्नी जिसने सर्वोसर लुटा दिया आपकी खुशियों के लिए सब उसे ये शब्द कहना की अब तुममें वो पहले सी बात ना रही उचित है। आप उस पत्नी की तुलना दूसरी स्त्रियों से कर उसे ओर भी अधिक शर्मिंदा करते हैं। यही कारण है कि आज के वर्तमान समय मे अपने आस पास या अपने ही परिवार की महिलाओं के साथ संतान होने के बाद शारीरिक रूपरेखा में आए परिवर्तन पर कसे जा रहे तंज़ओं को देखकर आज के नवयुवा लव एंड लीव रिलेशनशिप में रहते और संतान पैदा करने का नहीं सोचते। क्यों कि उनकी मानसिकता यही हो रही की यदि हमारा फिगर बिगड़ गया तो उन्हें भी तानों को सहना पड़ेगा। आखिर ये कहावत तो सही है ना कि बच्चे जो भी सीखते अपने बड़ों से ही सीखते हैं। सम्मान दें अपने घर की महिलाओं को वो आज जैसी भी हैं आपकी अर्धांगिनी हैं जिसने आपको पिता नाम के शब्द से गौरवान्वित करने के लिए अपने शरीर की रूपरेखा को भी परिवर्तित करने के लिए बलिदान दिया। जिसने अपनी जान की भी परवाह नहीं की वो तो बस आपके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए अपना सर्वोपरि लुटा बैठती है। उसके लिए आप और आपकी खुशी ही सब कुछ है।
— वीना आडवाणी तन्वी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित